राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा है कि अयोध्या में विवादित ढांचे के गिरने के बाद जब शरद पवार नरसिम्हा राव से मिलने गए थे, तो वह पूजा कर रहे थे। इसके दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। या तो राव ईश्वर से ढांचे को बचाने के लिए प्रार्थना कर रहे थे या फिर इसे गिराने के लिए।
बागडे ने कहा कि इस पूजा के संदर्भ में दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। एक तो यह है कि भगवान मस्जिद को बचाए और दूसरा यह कि भगवान उसे गिरने दे। राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित डॉ. शंकरराव चव्हाण की पुण्यतिथि और कुसुमताई चव्हाण स्मृती पुरस्कार के अवसर पर ये बयान दिया।
राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कार्यक्रम के दौरान कहा, “1992 में विवादित ढांचे के गिरने से पहले वे अयोध्या गए थे और ये बात उस समय के सभी अखबारों में छपी थी। मैं एक समिति का सदस्य होने के नाते वहां गया था और मैंने वहां सब कुछ अंदर से देखा था। उस समय वहां रामलला की मूर्ति पहले से थी। हालांकि, जब शंकरराव चव्हाण वहां गए थे, तो वहां पर रामलला की मूर्ति नहीं थी। स्वाभाविक रूप से उन्होंने पूछा कि यहां मस्जिद कहां है? तो लोगों ने उनसे कहा कि यहां पर मस्जिद नहीं है। सिर्फ ये तीन गुंबद हैं और इसी को लोग मस्जिद बोलते हैं।”
विवादित ढांचे को गिराए जाने की घटना का जिक्र करते हुए हरिभाऊ बागडे ने दावा किया। उन्होंने कहा, “साल 1992 में गुंबद गिरा और इतिहास इसी तरह से बनता है। अगर 1992 का इतिहास नहीं बदलता तो रामलला का मंदिर नहीं बन पाता। हम आज रामलला का भव्य मंदिर नहीं देख पाते। फिर भी, कुछ का मानना है कि इसमें किसी की गलती नहीं थी। नरसिम्हा राव ने अपने मंत्रिमंडल में कहा था कि उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार थी। अगर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाता, तो मस्जिद को बचाना संभव हो सकता था। लेकिन कुछ मंत्रियों, जैसे शरद पवार ने इसका विरोध किया और राष्ट्रपति शासन की बजाय अन्य उपायों की बात की।”
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का जिक्र करते हुए कहा, “1992 में विवादित ढांचे के मुद्दे पर कुछ नेताओं ने कहा कि राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लगाने की जरूरत नहीं है। यह बात किस संदर्भ में कही गई, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि उनके शब्दों के कई अर्थ हो सकते हैं। फैसला उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर निर्भर था। कल्याण सिंह ने कहा था कि वे गोली नहीं चलवाएंगे। उस समय शरद पवार, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिलने गए थे, तो वह पूजा कर रहे थे। इसका दो अर्थ निकाला जा सकता है। एक तो यह कि भगवान मस्जिद को बचाए, और दूसरा यह कि भगवान उसे गिरने दे। इसका हम दोनों तरफ से मतलब निकाल सकते हैं।”