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हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण क्षरण से निपटने के लिए एनजीओ ने कड़े कानून की मांग की

NGO demands strict law to deal with environmental degradation in Himachal Pradesh

पालमपुर, 6 अगस्त हिमाचल प्रदेश में हाल ही में बादल फटने, अचानक आई बाढ़ और भारी बारिश से हुई तबाही ने राज्य सरकार की पर्यावरण नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है।

पीपुल्स वॉयस, हिमालय नीति, हिमालय बचाओ अभियान और अन्य पर्यावरण समूहों जैसे कई सामाजिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों ने राज्य सरकार की पर्यावरण नीति की आलोचना की है। ये संगठन बड़े पैमाने पर पर्यावरण क्षरण से निपटने के लिए कड़े कानून की मांग कर रहे हैं, जिससे राज्य को हिला देने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद मिल सके।

ऐसा लगता है कि अधिकारियों ने पिछले मानसून के दौरान हुई तबाही से कोई सबक नहीं सीखा है। राज्य निर्माण गतिविधियों, खासकर सड़कों के किनारे, नदी के किनारों और ऊंचे पहाड़ों पर होने वाले निर्माण को नियंत्रित करने के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू के आदेशों को भी लागू करने में विफल रहा है। पिछले आठ दिनों में राज्य में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन के कारण 50 से अधिक लोगों की जान चली गई है।

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बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पहाड़ियों की अंधाधुंध कटाई, अवैध खनन, खराब अपशिष्ट प्रबंधन, वनों का संरक्षण, जैव विविधता का नुकसान और भूमि/मिट्टी का क्षरण राज्य के निवासियों के लिए चिंता का विषय बन गया है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण, होटलों, रिसॉर्ट्स, राजमार्गों और बिजली परियोजनाओं के निर्माण ने पर्यावरण पर और बोझ बढ़ा दिया है।

हिमाचल प्रदेश भूकंप, बादल फटने से होने वाली बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं के मामले में देश के शीर्ष पांच आपदा-प्रवण राज्यों की श्रेणी में आता है। हिमाचल प्रदेश भूकंपीय क्षेत्र (V) में आता है, इसके बावजूद ऊंची इमारतों पर प्रतिबंध का उल्लंघन किया जा रहा है।

सरकारों का उदासीन रवैया और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार तथा पर्यावरण कानूनों को लागू करने में विफलता यहां की सबसे बड़ी समस्या है। एनजीटी और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा कई बार सख्त निर्देश दिए जाने के बावजूद राज्य में अवैध निर्माण में कोई कमी नहीं आई है।

निर्माण कंपनियों, होटल व्यवसायियों और औद्योगिक समूहों द्वारा नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम, श्रम कानून, पर्यावरण कानूनों का लगातार उल्लंघन किया जाता है। सरकार और कानून लागू करने वाली एजेंसियाँ मूकदर्शक बनी हुई हैं और हमेशा अदालतों के आदेशों का इंतज़ार करती हैं।

पिछले 10 वर्षों में राज्य के विभिन्न भागों में 20 से अधिक बार बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं हुई हैं, जिनमें 1,000 करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई या बह गई। बड़े पैमाने पर भूमि कटाव और अचानक बाढ़ ने लोगों का जीवन दूभर कर दिया है।

1,000 करोड़ रुपये की संपत्ति क्षतिग्रस्त

भूकंप, बादल फटने से अचानक बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन और वनों की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं के मामले में हिमाचल प्रदेश देश के शीर्ष पांच आपदा प्रवण राज्यों की श्रेणी में आता है।
पिछले 10 वर्षों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में 20 से अधिक बड़े बादल फटने और अचानक बाढ़ की घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें 1,000 करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई या बह गई।

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