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विपक्ष ने महाराष्ट्र विधानसभा के सत्र को बताया विदर्भ की जनता के साथ धोखा

Opposition calls Maharashtra Assembly session a betrayal of the people of Vidarbha

महाराष्ट्र विधानसभा का एक सप्ताह का शीतकालीन सत्र रविवार को खत्म हो गया। विपक्षी दलों ने महायुति सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सत्र पूरी तरह विफल रहा, क्योंकि यह विदर्भ क्षेत्र के किसानों और नागरिकों को कोई ठोस राहत देने में नाकाम रहा।

संयुक्त प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार, वरिष्ठ राष्ट्रीय कम्युनिस्ट पार्टी (एसपी) विधायक जयंत पाटिल और शिवसेना (यूबीटी) विधायक दल के नेता भास्कर जाधव ने दावा किया कि सत्र के दौरान राज्य सरकार का एकमात्र उद्देश्य 75,286 करोड़ रुपए की पूरक मांगों को पारित करना और आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों को ध्यान में रखते हुए कई निर्णयों की घोषणा करना था।

भास्कर जाधव ने आरोप लगाया कि शीतकालीन सत्र मुख्य रूप से चुनावों से पहले सरकारी खजाने से खर्च को सुविधाजनक बनाने के लिए आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा, “मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई के लिए कुछ घोषणाएं की गईं, लेकिन विदर्भ के लिए एक भी घोषणा नहीं की गई। यह सत्र विदर्भ की जनता के साथ धोखा था और इसे नगर निगम चुनावों को ध्यान में रखकर आयोजित किया गया था।”

शिवसेना (यूबीटी) के विधायक सचिन अहीर ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सत्र के दौरान भ्रष्टाचार के कई मामलों पर बार-बार सवाल उठाए जाने के बावजूद सरकार कार्रवाई करने में विफल रही।

वडेट्टीवार ने कहा,”विदर्भ के धान, सोयाबीन और कपास की खेती करने वाले किसान इस सत्र का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। विपक्ष ने धान और सोयाबीन किसानों के लिए बोनस की मांग की, लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। राज्य में नशे की गंभीर समस्या है, लेकिन सरकार इसे दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने में विफल रही।

कांग्रेस विधान परिषद समूह के नेता सतेज पाटिल ने कहा, “कपास खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाने की मांग तो उठाई गई, लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया गया। खजाने में पैसा नहीं है, फिर भी नारे खूब लगाए जा रहे हैं। यही महायुति सरकार की स्थिति है। सरकार ने इतनी घोषणाएं की हैं कि उन्हें लागू करने में बजट की कमी हो जाएगी।”

जयंत पाटिल ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस दावे का खंडन किया कि महाराष्ट्र निवेश आकर्षित करने और बड़ी संख्या में समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने में अग्रणी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं, वे वास्तव में राज्य में निवेश नहीं कर रही हैं और कोई ठोस निवेश साकार नहीं हुआ है, जिससे बेरोजगारी की समस्या अनसुलझी ही बनी हुई है।

उन्होंने आगे कहा कि विपक्ष ने राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर गंभीर चिंताएं जताईं, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर ठोस जवाब देने में विफल रही।

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