भारत ने विभिन्न महाद्वीपों के 78 देशों में 600 से अधिक विकास परियोजनाएं शुरू की हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
गुजरात के वडोदरा में पारुल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए एस. जयशंकर ने कहा, “हमारे संसाधन सीमित हो सकते हैं, लेकिन भारत का दिल हमेशा बड़ा रहा है। यही कारण है कि अभी भी एक विकासशील देश होने के नाते, हमने विभिन्न महाद्वीपों के 78 देशों में 600 से अधिक विकास परियोजनाएं शुरू की हैं।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इसी कारण से, जब भारत अपने लोगों की देखभाल में व्यस्त था, तब भी देश कोविड महामारी के दौरान 99 देशों को टीके और 150 देशों को दवाएं उपलब्ध कराने में सक्षम रहा।
उन्होंने कहा कि जब हम ग्लोबल साउथ के हितों की वकालत करते हैं, तो इसके पीछे एक कारण है जिसे केवल इस समूह का सदस्य ही समझ सकता है। सही काम करना ही समझदारी वाला काम है।
विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि निकटता, समाजशास्त्र और विरासत के संबंधों को मजबूत करते हुए भी भारत का प्रयास विकास के माध्यम से सद्भावना को बढ़ावा देना रहा है।
उन्होंने कहा, “इसके लिए हमने दो मुख्य तरीकों का इस्तेमाल किया है जो हमारी विदेशी गतिविधियों को निर्देशित करते हैं। पहला, हम अपने अनुभवों को अपने भागीदारों के साथ बहुत स्पष्ट और ठोस तरीके से साझा करते हैं, क्योंकि हमें पता है कि ये उनके लिए अन्य स्रोतों से मिलने वाले अनुभवों की तुलना में ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं। दूसरा, हम लगातार उनके कौशल और क्षमता को बढ़ाने पर काम करते हैं, ताकि वे बेहतर ढंग से मूल्यांकन कर सकें और अपने फैसले खुद ले सकें। ये दोनों तरीके मिलकर हमारे भागीदार देशों, खासकर ग्लोबल साउथ के देशों को, ज्यादा विकल्प और दुनिया के अन्य देशों के साथ बातचीत में मजबूत स्थिति प्रदान करते हैं।”
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि जल जीवन मिशन मोदी सरकार की एक प्रमुख पहल है। अब अगर आप विदेशों में देखें, तो हमने इस लक्ष्य को तंजानिया, मोजाम्बिक, मालदीव और मलावी में बड़े पैमाने पर लागू किया है। या फिर बिजली और इसके कुशल प्रसारण की बात करें। भारत में विकसित की गई क्षमताओं को आज भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, नाइजीरिया, बेनिन और गाम्बिया में उपयोग किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि विश्व के सामने अन्य गंभीर चुनौतियां भी हैं, विशेषकर ग्लोबल साउथ में भारत के साझेदारों के समक्ष। कोविड महामारी के दौरान हम सभी को एहसास हुआ कि हमारी स्वास्थ्य सुरक्षा दूसरों पर कितनी निर्भर है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष ने ऊर्जा सुरक्षा की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। उर्वरकों की कमी और खाद्यान्नों की कमी ने कई अर्थव्यवस्थाओं को गहराई से प्रभावित किया है।
उन्होंने कहा, “कर्ज की स्थिति बिगड़ गई है और सुदूर देशों में लिए गए वित्तीय फैसलों के कारण व्यापार की संभावनाएं भी कमजोर हुई हैं। साथ ही, जलवायु परिवर्तन का दबाव लगातार बढ़ रहा है, जबकि इसे रोकने के लिए संसाधन कम हो रहे हैं। मैं इन चिंताओं को आपको डराने के लिए नहीं, बल्कि मानवता के सामने मौजूद बड़ी चुनौतियों के प्रति जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए बता रहा हूं। हम में से प्रत्येक, अपने काम के जरिए, कुछ न कुछ बदलाव ला सकता है।”
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