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पंडित जसराज : शास्त्रीय संगीत की एक ऐसी खनकती आवाज, जिसने अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव को भी जीवंत कर दिया था

Pandit Jasraj: Such a tinkling voice of classical music, which even enlivened the South Pole of Antarctica.

नई दिल्ली, 17 अगस्त। माता सरस्वती ने जिनके गले को वीणा के सुरों से भी ज्यादा मिठास दी। जिनकी चार पीढ़ियां संगीत से जुड़ी रही। जिनको संगीत विरासत में मिला। जिन्होंने चार साल की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया लेकिन संगीत साधना का रास्ता नहीं छोड़ा। ऐसे थे पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित पंडित जसराज।

पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज जिन्होंने शास्त्रीय संगीत को अपने जीने का सहारा बनाया। जिनकी गायकी ने भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी। फिल्मों में गाने का कभी पंडित जी को मन नहीं किया लेकिन खूब मान मनौव्वल के बाद पंडित जसराज ने चार फिल्मों में अपनी आवाज दी। 17 अगस्त 2020 का वो दिन था जब भारतीय शास्त्रीय संगीत का यह जगमगाता दीपक बुझ गया। पंडित जी ने भारत की सीमा से कोसों दूर सात समंदर पार अमेरिका के न्यू जर्सी में इसी दिन 90 साल की उम्र में अंतिम सांस ली।

जब एक बच्चे के सिर से पिता का साया उठता है तो वह एकदम बेसहारा महसूस करता है लेकिन, मां सरस्वती का आंचल और बड़े भाई पंडित मणिराम के आशीर्वाद ने पंडित जसराज को कभी बेसहारा नहीं होने दिया। हरियाणा के हिसार जिले में 28 जनवरी 1930 को पैदा हुए पंडित जसराज जी के परिवार को 4 पीढ़ियों तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी दिए। मेवाती घराने से संबंध रखने वाले पंडित जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली। लेकिन, नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। वह अभी संगीत का ककहरा सीख ही रहे थे कि पिता चल बसे। फिर बड़े भाई संगीत महामहोपाध्याय पंडित मणिराम ने उनकी संगीत साधना के गुरु बने और उन्हें तबला वादन भी सिखाया। पंडित जसराज 14 साल के हुए तो अपने तबला वादन के प्रति लोगों के अनादर का भाव देखकर उन्होंने इसे छोड़ दिया। अब वह इस संकल्प के साथ आगे बढ़ने लगे कि जब तक शास्त्रीय गायन में विशारद नहीं हो जाते तब तक अपने बाल नहीं कटवाएंगे।

फिर क्या था पंडित जसराज की आवाज ने ऐसा फैलाव लिया की वह साढ़े तीन सप्तकों तक अपनी आवाज को ले जाने लगे। उन्होंने अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर जाकर भी अपनी प्रस्तुति दी। वह सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम करने वाले पहले भारतीय भी बन गए।

पंडित जी का फिल्मी गानों में आवाज का सफर भी काफी अनोखा रहा है। पहली बार साल 1966 में आई फिल्म ‘लड़की सह्याद्रि’ में उन्होंने अपनी आवाज दी थी। डायरेक्टर वी शांताराम की इस फिल्म में उन्होंने ‘वंदना करो अर्चना करो’ भजन को गाया था। फिर साल 1975 में आई फिल्म ‘बीरबल माय ब्रदर’ में उन्होंने एक गाना गाया था। 2008 में रिलीज़ विक्रम भट्ट निर्देशित फ़िल्म ‘1920’ के लिए उन्होंने अपनी जादुई आवाज से सुनने वालों को बांधे रखा। 2012 में उन्होंने इरफ़ान ख़ान की फ़िल्म लाइफ़ ऑफ़ पाई के एक गीत को अपनी आवाज से सजाया था। इसके अलावा उन्होंने दो भक्ति गीत श्री मधुराष्टकम् और गोविन्द दामोदर माधवेति भी गाए।

पंडित जसराज को साल (2000) में पद्म विभूषण, (1990) में पद्म भूषण, (1975) में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड, लता मंगेशकर पुरस्कार के साथ महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से भी नवाजा गया था। नासा ने एक क्षुद्र ग्रह जो (मंगल और बृहस्पति के बीच) 11 नवंबर 2006 को खोजा उसे पंडित जसराज का नाम दे दिया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार थे।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरं।। वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित इस भगवान कृष्ण की मधुर स्तुति मधुराष्टकम् को अपनी आवाज के जरिए पंडित जसराज ने घर-घर तक पहुंचा दिया।

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