आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि गुरुवार को है। इस दिन द्वादशी श्राद्ध के साथ इंदिरा एकादशी का पारण भी किया जाएगा। वहीं, सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में रहेंगे।
दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर 39 मिनट तक रहेगा, और राहुकाल का समय दोपहर के 12 बजकर 15 मिनट से शुरू होकर 1 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
इस दिन द्वादशी तिथि 17 सितंबर रात के 11 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर 18 सितंबर सुबह 11 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी तिथि लग जाएगी। इस हिसाब से द्वादशी श्राद्ध गुरुवार को ही है।
पुराणों के अनुसार, द्वादशी श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि पर हुई हो या जिन्होंने अपने जीवनकाल में संन्यास लिया हो। इसे मुख्य रूप से ‘संन्यासी श्राद्ध’ भी कहते हैं, क्योंकि यह संन्यासियों के श्राद्ध का दिन है। इस श्राद्ध को करने से धन-धान्य, आरोग्य, विजय और दीर्घायु प्राप्त होती है।
पितृ पक्ष में पार्वण श्राद्ध के लिए कुतुप और रौहिण मुहूर्त शुभ माने जाते हैं। श्राद्ध के अनुष्ठान अपराह्न काल तक पूरे कर लेने चाहिए और अंत में तर्पण किया जाता है, जिससे पितरों को शांति और तृप्ति मिलती है।
श्राद्ध करने के लिए घर की सफाई करें और गंगाजल और गौमूत्र से घर को शुद्ध करें। साथ ही दक्षिण दिशा में मुंह रखकर तर्पण करें। घर के आंगन में रंगोली बनाएं, पितरों के लिए शुद्ध भोजन बनाएं। सबसे पहले अपने मान या फिर ब्राह्मणों को निमंत्रण दें और उन्हें भोजन कराएं। उसके बाद दक्षिणा और सामग्री दान करें, जिसमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण आदि शामिल हैं। श्राद्ध में सफेद फूलों का उपयोग करें। दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े और तिल का विशेष महत्व है।
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि खत्म होने तक ही कर लेना चाहिए, अगर आप तिथि के बाद व्रत तोड़ते हैं, तो उसका कोई महत्व नहीं रहता है।
पारण सूर्योदय के बाद और द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। व्रत तोड़ने के लिए प्रातःकाल सबसे उपयुक्त समय है, लेकिन अगर यह संभव न हो तो मध्याह्न के बाद पारण किया जा सकता है। एकादशी व्रत कभी-कभी लगातार दो दिनों के लिए होता है, जिसमें स्मार्त परिवार के लोगों को पहले दिन और संन्यासी मोक्ष की इच्छा रखने वाले लोगों को दूसरे दिन व्रत करना चाहिए।