सोलन, 30 जून नकदी की कमी से जूझ रही राज्य सरकार परवाणू के निकट कामली गांव में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित करने के लिए धनराशि उपलब्ध कराने में विफल रही है, जबकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) वर्षों से इसकी निगरानी कर रहा है।
परवाणू का सीवेज पिंजौर तक पहुंच रहा है हरियाणा सरकार के अधिकारी लगातार परवाणू से निकलने वाले अनुपचारित सीवेज के कारण पिंजौर में जलापूर्ति योजनाओं के दूषित होने का मुद्दा उठाते रहे हैं। पता चला कि सेक्टर 5 और 6 का सीवेज कौशल्या नदी में डाला जाता है, जबकि सेक्टर 1, 2 और 4, टकसाल गांव और परवाणू के डगर का सीवेज सुखना नाले में डाला जाता है। सुखना नाला कौशल्या बांध के सामने सूरजपुर के पास घग्गर नदी में मिल जाता है, जो हरियाणा को पीने का पानी उपलब्ध कराता है।
इस एसटीपी का निर्माण एनजीटी के निर्देश पर किया जा रहा था, क्योंकि यह पाया गया था कि परवाणू शहर के साथ सुखना नाले का जल गुणवत्ता सीवेज अपशिष्ट से प्रदूषित हो रहा था।
हालांकि एनजीटी के निर्देशों के अनुसार एसटीपी को मार्च 2020 में चालू किया जाना था, लेकिन धन की कमी के कारण इसका निर्माण कार्य रुका हुआ है।
यह ध्यान देने योग्य है कि हरियाणा सरकार के अधिकारी लगातार परवाणू से आने वाले अशोधित सीवेज के कारण पिंजौर में जलापूर्ति योजनाओं के दूषित होने का मुद्दा उठाते रहे हैं।
पता चला कि सेक्टर 5 और 6 का सीवेज कौशल्या नदी में डाला जाता था, जबकि सेक्टर 1, 2 और 4, टकसाल गांव और परवाणू के डगर का सीवेज सुखना नाले में बहाया जाता था। सुखना नाला कौशल्या डैम के सामने सूरजपुर के पास घग्गर नदी में मिल जाता है, जो हरियाणा को पीने का पानी उपलब्ध कराता है।
सीवेज के उपचार को सुनिश्चित करने के लिए, प्रतिदिन 1 मिलियन लीटर क्षमता वाले दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की योजना बनाई गई थी। इनमें से एक परवाणू के सेक्टर 1 क्षेत्र में स्थापित किया गया है, जबकि दूसरा, जो कामली गांव में स्थापित किया जा रहा है, फंड की कमी के कारण रुकावटों का सामना कर रहा है। यहां तक कि पहला एसटीपी भी अभी तक बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाया है और इसकी क्षमता से बहुत कम कनेक्शन हैं। इससे प्लांट स्थापित करने का मूल उद्देश्य ही विफल हो गया है।
जल शक्ति विभाग (परवाणू) के एसडीओ भानु ने कहा, “कमली गांव में एसटीपी को पूरा करने के लिए पिछले एक साल से कोई फंड नहीं मिला है और जिस ठेकेदार को यह काम सौंपा गया है, उसने काम की गति धीमी कर दी है। पिछले एक साल से करीब 3 करोड़ रुपये के लंबित बिलों का भुगतान नहीं किया गया है।”
सुखना नाले की गुणवत्ता खराब होती जा रही है और हर बार इसका बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया है। इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा प्राथमिकता-1 के अंतर्गत रखा गया है। इसे प्रदूषित माना जाता है और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए पहचाना जाता है।
इतना ही नहीं, परवाणू शहर में हर साल डायरिया का प्रकोप होता है क्योंकि सीवेज में कोलीफॉर्म की मात्रा अधिक होने के कारण पीने योग्य पानी दूषित हो जाता है। इस साल भी 11 अप्रैल से अब तक 750 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि पानी में कोलीफॉर्म की उच्च मात्रा इस बात का संकेत हो सकती है कि पेयजल में मलजल मिला हुआ है और इससे डायरिया तथा संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।