प्रयागराज, 13 जनवरी । महाकुंभ 2025 की शुरुआत के साथ ही प्रयागराज में भक्तों और साधु-संतों का आगमन शुरू हो गया है। इस धार्मिक आयोजन में लाखों नागा साधु, सन्यासी और अन्य संत अपनी तपस्या, साधना और धार्मिक कार्यों में जुटे हुए हैं। कुंभ मेला सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए एक विशेष अवसर होता है, जहां वे धार्मिक अनुष्ठान करते हैं और अपने जीवन के उद्देश्य को साधते हैं।
इस साल के महाकुंभ में जूना अखाड़ा प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जिसमें नागा साधुओं का जमावड़ा देखा जा रहा है। नागा साधु, जो सन्यासी जीवन जीते हैं, कुंभ के इस मौके पर विशेष रूप से पूजा-पाठ में व्यस्त हैं। इन साधुओं की वेशभूषा और साधना को देख कर आम लोग भी प्रभावित होते हैं और कई लोग तो इन साधुओं के जीवन को अपनाने के लिए संन्यास धारण कर रहे हैं।
जूना अखाड़े में पहुंचे नागा साधुओं के बारे में जानकारी देते हुए, केदारनाथ धाम की गुफा वाले बाबा थानापति घनानंद गिरी ने बताया कि वह गुजरात से आए हैं। उन्होंने बताया कि एक भक्त ने उनकी गाड़ी को भगवा रंग से पेंट किया है। वह यात्रा के दौरान सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं और आने वाले समय में नेपाल और शिवरात्रि के दौरान विभिन्न स्थानों पर जाएंगे।
इसके अलावा, महिला नागा साधु संतों के लिए भी धीरे-धीरे व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं। इन महिलाओं का भी अपना अलग अस्तित्व है और वे तपस्या में जुटी रहती हैं। इस संबंध में महिला अखाड़े की अध्यक्ष आराधना गिरी ने बताया कि महिला संतों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं, ताकि वे शांति से अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन कर सकें।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि इच्छुक व्यक्ति को अखाड़े में प्रवेश के पहले उसकी छानबीन करनी पड़ती है। इसके बाद उनके ब्रह्मचर्य की परीक्षा दी जाती है और सफल होने पर दीक्षा दी जाती है। साधक को अपने बाल कटवाने और खुद को मृत मानकर श्राद्ध कर्म करना होता है। इसके बाद वह गुरुमंत्र प्राप्त करता है, जो उसकी तपस्या और साधना का आधार बनता है। महाकुंभ के इस आयोजन में साधु-संतों का योगदान न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रति आस्था और समर्पण को भी प्रकट करता है। इस बार लगभग 144 साल बाद इस महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है, जिससे श्रद्धालुओं का उत्साह और भी बढ़ गया है।
उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आने वाले भक्तों के लिए विविध धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है, और सभी साधु-संतों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं, ताकि वे अपनी तपस्या और साधना को शांति से जारी रख सकें।