विधानसभा में आज सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच असंसदीय और आपत्तिजनक शब्दों के प्रयोग को लेकर तीखी बहस हुई, जिसके कारण अध्यक्ष कुलदीप पठानिया को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
हंगामा तब शुरू हुआ जब अध्यक्ष ने कहा कि ‘भ्रष्टाचार’ शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि उसके पीछे कोई सबूत न हो। उन्होंने आगे कहा, “नियमों का हवाला दिए बिना विधायकों द्वारा लगाए गए अपमानजनक आरोपों की अनुमति नहीं दी जाएगी। अभद्र शब्द, जो भड़काऊ हों और तनाव पैदा करें, रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं होंगे।” अध्यक्ष ने कहा कि वह सदन को नियमों के अनुसार ही चलाएँगे।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अध्यक्ष से आग्रह किया कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा निवेशकों को दी गई रियायतों पर उनकी टिप्पणी को न हटाया जाए, क्योंकि उनकी सरकार के पास अनियमितताओं के सबूत हैं। विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर ने निवेशकों को विशेष पैकेज दिए जाने को लेकर उनकी सरकार पर लगाए जा रहे आरोपों पर आपत्ति जताई। हंगामे के बीच अध्यक्ष ने दोपहर 12.30 बजे सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी।
अध्यक्ष ने धर्मशाला विधायक सुधीर शर्मा द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ दिए गए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव के नोटिस को भी खारिज कर दिया, क्योंकि यह नियमों के अनुरूप नहीं था और इसके साथ कोई सबूत भी नहीं था। विपक्ष ने राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी द्वारा ठाकुर के खिलाफ की गई टिप्पणी पर भी आपत्ति जताई।
पठानिया ने कहा कि विधानसभा जनता के मुद्दे उठाने का मंच है, राजनीतिक लाभ उठाने का नहीं। उन्होंने आगे कहा, “आप जनता की आवाज़ उठा सकते हैं, लेकिन आपकी बात नियमों के दायरे में होनी चाहिए और उसमें कोई राजनीतिक मंशा नहीं होनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि विधायकों के भाषणों की असंपादित वीडियो क्लिपिंग तब तक जारी नहीं की जाएंगी जब तक कि इन्हें विधानसभा से मंजूरी नहीं मिल जाती, ताकि ऐसे शब्द और आरोप मीडिया में न आएं।
पठानिया ने कहा, “अगर बहस की विषयवस्तु विषयवस्तु से बाहर है, तो वह सदन के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं होगी। पेखुबेला परियोजना में विसंगतियों के आरोप रिकॉर्ड में नहीं जाएँगे, क्योंकि आपको इसे साबित करना होगा। आप भ्रष्टाचार का आरोप लगा सकते हैं, लेकिन यह नहीं कह सकते कि भ्रष्टाचार हुआ था।”
अध्यक्ष ने कहा कि सदन में जो कुछ भी कहा गया है, उसे कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती, लेकिन विधानसभा के संरक्षक के रूप में मर्यादा बनाए रखना उनका कर्तव्य है। उन्होंने कहा, “संविधान ने मुझे शक्तियाँ दी हैं और मेरे निर्णय अंतिम हैं और किसी भी जाँच के अधीन नहीं हैं। सदन सुचारू रूप से चलना चाहिए, लेकिन बिना सबूत के आरोप रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं हो सकते।”
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