October 31, 2024
Chandigarh

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने जीवन एवं स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग वाली याचिका खारिज की

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानून प्राचीन नैतिक और सामाजिक सिद्धांतों में गहराई से निहित हैं। न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल ने कहा कि भारतीय दंड संहिता और नव स्थापित भारतीय न्याय संहिता दोनों ही इन स्थायी मूल्यों पर आधारित हैं।

न्यायमूर्ति मौदगिल ने जोर देकर कहा कि संसद या किसी विधानसभा में विधिनिर्माताओं द्वारा बनाया गया हर कानून मूल रूप से हमारी प्राचीन जीवन पद्धतियों में निहित है। इसी आधार पर आईपीसी और अब भारतीय न्याय संहिता का निर्माण हुआ, जो प्राचीन काल से चले आ रहे सिद्धांतों और परिस्थितियों पर आधारित है।

न्यायमूर्ति मौदगिल ने कहा कि आपराधिक अपराधों का वर्गीकरण ऐतिहासिक रूप से प्राचीन काल से सामाजिक मानदंडों और नैतिक मानकों द्वारा निर्देशित रहा है। समाज द्वारा अस्वीकार्य या अनैतिक माने जाने वाले कृत्यों को लगातार इन कानूनी ढाँचों के तहत परिभाषित और दंडित किया गया है। औपनिवेशिक काल के दौरान शुरू की गई आईपीसी और इसके उत्तराधिकारी भारतीय न्याय संहिता, इन प्राचीन नैतिक दिशानिर्देशों की निरंतरता को दर्शाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि कानून प्रासंगिक बने रहें और सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करें।

यह फैसला जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग करने वाली एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया। न्यायमूर्ति मौदगिल ने पाया कि याचिका तुच्छ है, इसमें विश्वसनीयता की कमी है और यह संभवतः अदालत को गुमराह करने का प्रयास है।

बेंच ने पाया कि यह याचिका न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र का हवाला देने के उद्देश्य से बनाई गई एक मनगढ़ंत कहानी लगती है। याचिकाकर्ता मध्य प्रदेश और पंजाब सहित विभिन्न राज्यों से थे, उनके पास उत्तर प्रदेश और राजस्थान के गवाह थे और पिंजौर के काजी द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र था। प्रस्तुत तस्वीरों में याचिकाकर्ताओं को एक डबल बेड पर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते हुए दिखाया गया था, जिसमें कोई काजी या गवाह मौजूद नहीं था, जो याचिका के दावों का खंडन करता है।

न्यायमूर्ति मौदगिल ने जोर देकर कहा कि अदालत इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकती कि संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देकर सुरक्षा मांगने की आड़ में पूरी न्यायिक प्रणाली और कानूनी मिसालों की अवहेलना की जा रही है।

न्यायमूर्ति मौदगिल ने जोर देकर कहा, ‘‘इस कृत्य की जांच की जानी चाहिए क्योंकि यह अदालत को गुमराह करने का प्रयास करता है और सामाजिक, नैतिक मूल्यों, नैतिकता और परंपराओं को नुकसान पहुंचाता है जिन पर भारतीय संस्कृति आधारित है।’’ हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ताओं को मामला वापस लेने की अनुमति दे दी।

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