N1Live Uttar Pradesh बनारस की रंगभरी एकादशी : काशी विश्वनाथ संग ससुराल पहुंचती हैं गौरा, गौना में शामिल होते हैं ‘गण’
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बनारस की रंगभरी एकादशी : काशी विश्वनाथ संग ससुराल पहुंचती हैं गौरा, गौना में शामिल होते हैं ‘गण’

Rangbhari Ekadashi of Banaras: Gauri reaches her in-laws' place with Kashi Vishwanath, 'Gana' joins in the gauna

वाराणसी, 3 मार्च । ‘मईया गौरा चलेलीं ससुराली हो…’ और गौरा के साथ पूरा बनारस (वाराणसी) झूम जाता है। रंगभरी एकादशी पर ये गीत फगुआ के रंग को और गाढ़ा कर देता है। फगुआ (होली) से ठीक चार दिन पहले बाबा श्री विश्वनाथ की नगरी काशी एक अलग ही रंग में रंगी दिखाई देती है। चहुंओर उल्लास छाया रहता है और हो भी क्यों न, उस दिन विश्व के नाथ माता पार्वती को मायके से उनके घर काशी जो ले आते हैं। ऐसे में रंगभरी एकादशी पर धर्मनगरी रंग जाती है, उल्लास, खुशी, भावनाओं और भक्ति के रंग में।

दुनिया भर में जहां होली से चार दिन पहले होली की तैयारी चल रही होती है। वहीं, काशीवासी बाबा और माता से अनुमति लेकर होली खेलना शुरू कर देते हैं। काशी के कोने-कोने में ‘नम: पार्वती पतये हर-हर महादेव’ गूंजता रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन गौना बारात का आगमन होता है। बाबा विश्वनाथ माता गौरा को अपने साथ घर ले जाने के गण के साथ पहुंचते हैं, जिसकी शुरुआत हल्दी लगाने के साथ शुरू होती है।

स्थानीय प्रज्ञा बताती हैं, “पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव माता के साथ पहली बार रंगभरी एकादशी को गौना कराकर काशी आए थे। इस विशेष तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का भी विशेष विधान है। काशीवासियों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। काशी के छोटे से लेकर बड़े हर देवी-देवता के मंदिर को सजाया जाता है और लोग उल्लास में डूबे रहते हैं।”

प्रभुनाथ त्रिपाठी परंपरा की बात करते हैं। उन्होंने बताया, “मान्यता है कि देवी-देवताओं के साथ काशीवासी भगवान शिव और माता पार्वती के आने की खुशी में ना केवल दीप जलाकर बल्कि गुलाल और अबीर उड़ाकर उनका स्वागत करते हैं। पुरातन काल से ही इस परंपरा कि नींव पड़ी और आज भी उल्लास में डूबे काशीवासी बाबा के साथ माता पार्वती का स्वागत रंग, गुलाल और फूलों की वर्षा के साथ करते हैं।”

यह भी माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन रंग बाबा और माता पार्वती को चढ़ाकर भक्त उनसे होली खेलने की अनुमति भी मांगते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का भव्य डोला निकाला जाता है। इस दिन गली का कोना-कोना रंगों में रंगा नजर आता है।

मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन बाबा और गौरा माता की पूजा करने से मनचाहे जीवनसाथी की कामना पूरी होती है और जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती है। रंगभरी एकादशी के दिन स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती काशी में आते हैं। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती को उनके ससुराल का भ्रमण भी कराते हैं।

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