N1Live Haryana अपराध के प्रति प्रतिक्रिया अपराध की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
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अपराध के प्रति प्रतिक्रिया अपराध की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय

Response to crime should be commensurate with the gravity of the crime: Punjab and Haryana High Court

चंडीगढ़, 18 अगस्त पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि अपराधों के प्रति न्यायिक प्रतिक्रिया अपराध की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए। उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि गंभीर कदाचार के मामलों में नरमी बरतने से न केवल कानून का शासन कमजोर होता है, बल्कि व्यवस्था में जनता का विश्वास भी खत्म होता है।

उच्च न्यायालय ने भी इस अपराध के प्रति गहरी घृणा व्यक्त की, साथ ही इसे मानवता और समाज के मूलभूत सिद्धांतों का घोर उल्लंघन माना। न्यायालय का मानना ​​था कि जघन्य कृत्य न केवल पीड़ित का अपमान है, बल्कि समुदाय की सामूहिक अंतरात्मा पर हमला है।

अदालत का यह भी मानना ​​था कि सज़ा न्यायसंगत और कठोर निवारक दोनों होनी चाहिए, जिसमें किसी भी तरह की नरमी की गुंजाइश न हो जिसे सहिष्णुता या स्वीकृति के रूप में गलत समझा जा सकता है। अदालत का मानना ​​था कि “न्याय त्वरित और दृढ़ होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऐसे अपराधों का दंड से नहीं बल्कि कानून की पूरी ताकत से सामना किया जाएगा।”

न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने 25 साल पुराने मामले में गैर इरादतन हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए एक आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, जिसे पीड़ित के परिजनों को देने का निर्देश दिया गया।

अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया और इस आरोप से पहले उसे बरी करने के फैसले को पलट दिया।

इस मामले की शुरुआत 22 सितंबर, 1999 को हुई एक चाकूबाजी की घटना से हुई। आरोपी को शुरू में गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया था और उसे आठ साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। ट्रायल कोर्ट ने उसे धारा 302 आईपीसी के तहत हत्या के अधिक गंभीर आरोप से बरी कर दिया, जिसके बाद हरियाणा राज्य ने अपील दायर की।

राज्य के वकील ने मामले को “दुर्लभतम” बताते हुए मृत्युदंड की मांग की थी, लेकिन बेंच ने इसे स्वीकार नहीं किया। बचाव पक्ष के वकील ने इस आधार पर आजीवन कारावास से कम की सजा की मांग की थी कि अपराध 1999 में हुआ था और फैसला 2003 में सुनाया गया था, लेकिन बेंच ने इसे भी खारिज कर दिया।

पीठ ने जोर देकर कहा, “आईपीसी की धारा 302 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार, यह अदालत दोषी पर आजीवन कारावास की सजा लगाने के लिए बाध्य है। इसलिए, आजीवन कारावास से कम कारावास की कोई भी सजा आरोपी/दोषी पर नहीं लगाई जा सकती।”

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