August 4, 2025
National

सदाशिवराव भाऊ : प्राणों की आहुति देकर देश की एकता और स्वाभिमान की रक्षा की

Sadashivrao Bhau: He sacrificed his life to protect the unity and self-respect of the country

सदाशिवराव भाऊ मराठा साम्राज्य के एक प्रतिष्ठित सेनापति और प्रशासक थे, जिन्हें विशेष रूप से तीसरे पानीपत युद्ध (1761) में उनकी साहसिक नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की एकता और स्वाभिमान की रक्षा की।

सदाशिवराव भाऊ का जन्म 4 अगस्त 1730 को सासवड, पुणे के निकट एक मराठी चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बाजीराव प्रथम के छोटे भाई चिमाजी अप्पा और रखमाबाई (पेठे परिवार) के पुत्र थे।

उनकी माता की मृत्यु उनके जन्म के एक महीने बाद हो गई थी, जब वे 10 वर्ष के थे तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया। ऐसे में उनकी परवरिश दादी राधाबाई और चाची काशीबाई ने की। उनकी शिक्षा सतारा में रामचंद्र बाबा शेणवी के मार्गदर्शन में हुई, जो एक कुशल शिक्षक थे।

सदाशिवराव भाऊ ने अपनी प्रारंभिक सैन्य उपलब्धि 1746 में कर्नाटक अभियान के दौरान हासिल की, जहां उन्होंने महादोबा पुरंदरे और सखाराम बापू के साथ मिलकर कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। उनकी नेतृत्व क्षमता और रणनीति ने उन्हें नानासाहेब पेशवा के शासन में वित्त मंत्री और बाद में सेनापति के पद तक पहुंचाया।

1760 में, जब अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया, तो नानासाहेब ने सदाशिवराव को मराठा सेना का नेतृत्व सौंपा ताकि दिल्ली और उत्तरी भारत की रक्षा की जा सके। इस अभियान के लिए उन्होंने 45,000 से 60,000 सैनिकों की सेना तैयार की।

तीसरे पानीपत युद्ध में, सदाशिवराव भाऊ ने अब्दाली की सेना के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया। उनकी रणनीति तोपखाने के उपयोग पर आधारित थी, लेकिन खाद्य आपूर्ति की कमी और गठबंधन की अनुपस्थिति ने उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया।

युद्ध के दौरान, उनके भतीजे विश्वासराव की मृत्यु ने मराठा सेना के मनोबल को तोड़ा, और अंततः 14 जनवरी 1761 को वे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी पत्नी पार्वती बाई युद्ध के दौरान उनके साथ थीं। उन्होंने उनकी मृत्यु को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और विधवा का जीवन नहीं जिया।

सदाशिवराव भाऊ का जीवन साहस, बलिदान और मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है। उनकी मृत्यु के बाद पुणे में सदाशिव पेठ नामक क्षेत्र उनके सम्मान में स्थापित किया गया। इतिहास में उनकी एक भूल के कारण उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा, लेकिन उनकी बहादुरी और योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

Leave feedback about this

  • Service