नई दिल्ली, 13 अक्टूबर । देश का विकास करना है तो उद्योग और सहकारिता के क्षेत्र को मजबूत करना होगा। ऐसी ही सोच थी भारत के मशहूर उद्योगपति लल्लू भाई सामलदास मेहता की, जिन्हें भारतीय सहकारी आंदोलन का जनक भी कहा जाता है। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि किसानों की मदद के लिए देश को पहला सहकारी बैंक मिला। इसके अलावा उन्होंने बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा की सह-स्थापना में अहम योगदान दिया।
मशहूर उद्योगपति सामलदास मेहता का जन्म 14 अक्टूबर 1863 को सौराष्ट्र के भावनगर कस्बे में हुआ था। वह एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता सामलदास परमानंद भावनगर राज्य में मुख्य न्यायाधीश और दीवान थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई भावनगर में ही हुई। इसके बाद उन्होंने मुंबई की एलफिस्टन कॉलेज से आगे की पढ़ाई की।
जब उनकी उम्र महज 18 साल थी, तभी वह गुजरात के भावनगर के महाराजा के दरबार में एक राजस्व आयुक्त नियुक्त हो गए। इस दौरान उन्होंने भावनगर में बिजली कंपनी शुरू करने में मदद की और राज्य में कई प्रशासनिक और राजस्व सुधार भी पेश किए। इसी बीच साल 1884 में उनकी शादी भोलानाथ साराभाई की पोती सत्यवती के साथ हो गई।
हालांकि, महाराजा भवसिंहजी द्वितीय से रिश्ते खराब होने के बाद उन्होंने साल 1900 में बंबई का रूख किया। इस दौरान उनकी मुलाकात गोपालकृष्ण गोखले से हुई। उन्होंने सहकारी आंदोलन में रुचि ली और स्वदेशी लीग की अध्यक्षता भी की।
सामलदास मेहता ने भारत के पहले भारतीय स्वामित्व वाले सीमेंट संयंत्र (पोरबंदर), चीनी कारखाने (बारामती) और शिपिंग कंपनी (बॉम्बे) की सह-स्थापना की। यही नहीं, उन्होंने किसानों की मदद के लिए भारत के पहले सहकारी बैंक की सह-स्थापना की। इसके बाद उन्होंने बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा की सह-स्थापना में भी भूमिका निभाई।
उन्होंने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, टाटा हाइड्रो और एडवांस मिल्स के निदेशक के रूप में भी काम किया। उन्होंने बालचंद हीराचंद के साथ ‘सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी’ नामक जहाजरानी कंपनी की स्थापना में भी अहम योगदान दिया।
उनका मानना था कि उद्योगों के विकास और सहकारिता के आधार पर ही भारत विकास कर सकता है। साल 1926 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि से नवाजा। साल 1936 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।