नवरात्रि के अवसर पर सोमवार तड़के बिहार के गयाजी में स्थित भस्मकुट पर्वत पर स्थित मां मंगला गौरी मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। ‘जय मंगला माई’ के जयकारों से पूरा परिसर भक्तिमय हो गया। सुबह से ही हजारों श्रद्धालु लंबी कतारों में खड़े होकर माता के दर्शन के लिए पहुंचे।
गयाजी स्थित मां मंगला गौरी मंदिर 15वीं शताब्दी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जिसका उल्लेख पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भस्मकुट पर्वत पर मां सती का स्तन गिरा था, जिस कारण इसे पालनपीठ या पालनहार पीठ भी कहा जाता है। यह मंदिर देवी सती और शक्ति की उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यह मंदिर भस्मकुट पर्वत की चोटी पर पूर्वमुखी दिशा में स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को 115 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के गर्भगृह में हमेशा अंधेरा रहता है, लेकिन यहां वर्षों से एक दीपक निरंतर प्रज्वलित है, जो कभी बुझता नहीं।
मंदिर परिसर में मां काली, भगवान गणेश, हनुमान जी और भगवान शिव के मंदिर भी स्थित हैं।
देवी मंगला गौरी को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी माना जाता है। नवरात्रि के आठवें दिन विशेष रूप से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर परिसर में एक अद्भुत शिला स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसे छूने से भक्तों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि मां सती का स्तन गिरकर यही शिला बना और यहीं मां मंगला गौरी का नित्य निवास है।
नवरात्रि के दौरान हर साल यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां पूजा-अर्चना करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि मिलती है। यह मंदिर गया शहर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गया रेलवे स्टेशन से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।