रांची, 19 मार्च । झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की ‘सीता’ सोरेन अब ‘जय श्रीराम’ के नारे बुलंद करने वाली पार्टी की छतरी के नीचे आ चुकी हैं। सीता सोरेन गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे के जरिए भाजपा के संपर्क में थीं और अंततः मंगलवार को वह पार्टी, परिवार और विधायकी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं।
वह झारखंड के संथाल परगना इलाके की जामा विधानसभा सीट से लगातार तीन टर्म विधायक चुनी गईं थीं। वह झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के परिवार की बड़ी बहू हैं। उनके भाजपा में जाने से झामुमो की अगुवाई वाले राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन और सोरेन परिवार को बड़ा झटका लगा है।
पहले हेमंत सोरेन का जेल जाना, उसके बाद राज्य में कांग्रेस की इकलौती सांसद गीता कोड़ा का भाजपा में शामिल होना और अब सीता सोरेन का ‘तीर-धनुष’ छोड़कर ‘कमल’ थामना, इन तीन बड़े घटनाक्रमों का राज्य में आगामी लोकसभा चुनाव पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।
दरअसल, 2023 के नवंबर-दिसंबर महीने से ही झारखंड में झामुमो की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक के बाद परेशानी खड़ी होने लगी। गठबंधन के मुखिया और तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन पर जमीन घोटाले में ईडी जांच का शिकंजा कसने लगा था। एजेंसी समन दर समन भेज रही थी, हेमंत सोरेन हाजिर होने से इनकार कर रहे थे।
आखिरकार 29 दिसंबर को ईडी ने उन्हें सातवीं बार समन भेजा और इसे आखिरी समन बताया। इस समन के बाद हेमंत सोरेन समझ चुके थे कि उन्हें जेल जाना पड़ सकता है और सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। इसी आशंका के मद्देनजर उन्होंने अपनी पत्नी को सीएम की कुर्सी सौंपने की योजना बनाई थी। योजना के तहत 31 दिसंबर को गांडेय क्षेत्र के झामुमो विधायक सरफराज अहमद से इस्तीफा दिलवाया गया। रणनीति यह थी कि उनके जेल जाने पर उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सीएम की कुर्सी संभालेंगी, जो अगले छह महीनों में गांडेय सीट पर उपचुनाव कराए जाने पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचेंगी।
इस तरह जेल जाने के बाद भी सत्ता पर उनकी पकड़ बनी रहेगी। लेकिन, उनकी यह रणनीति भाभी सीता सोरेन के मुखर विरोध और झामुमो के भीतर सहमति कायम न होने की वजह से परवान नहीं चढ़ सकी। इसके बाद ही चंपई सोरेन को गठबंधन का नेता चुना गया। झामुमो के इतिहास में पहली बार ‘सत्ता’ की कमान शिबू सोरेन परिवार से बाहर के किसी शख्स हाथ में जा पहुंचा।
हेमंत सोरेन ने जैसे ही सीएम के लिए खुद की जगह कल्पना सोरेन का नाम आगे करने की कोशिश की, उनकी भाभी सीता सोरेन खुलकर विरोध में उतर आई थीं। उन्होंने साफ कह दिया था कि परिवार की बड़ी बहू होने के नाते पहले उनका हक बनता है और वह किसी हाल में कल्पना को सीएम के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगी। उस वक्त उन्हें किसी तरह मनाया गया।
इसके बाद जब चंपई सोरेन की अगुवाई में नई सरकार बनी तो सीता सोरेन मंत्री पद की प्रबल दावेदार थीं। हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन भी मंत्री पद के लिए दावेदारी कर रहे थे। एक ही परिवार से दो मंत्री बनाना व्यावहारिक नहीं था और इससे पार्टी में विद्रोह की स्थिति बन सकती थी। लिहाजा, पार्टी ने बसंत सोरेन को मंत्री बना दिया और सीता सोरेन की दावेदारी खारिज कर दी गई।
इसके बाद ही सीता सोरेन ने बड़े फैसले लेने की तरफ इशारा कर दिया। सीता सोरेन पहले भी परिवार में अपनी उपेक्षा का आरोप लगाती रही हैं। वह पिछले दो साल से अपनी दो बेटियों जयश्री और राजश्री के लिए भी पार्टी में हिस्सेदारी मांग रही थीं, लेकिन उन्हें तवज्जो नहीं मिल रही थी। इस बीच हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन की राजनीति में एंट्री हो गई और उन्हें पार्टी का प्रमुख चेहरा बनाकर पेश किया जाने लगा।
सीता सोरेन को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। वह पहले ही कह चुकी थीं कि बड़ी बहू होने के नाते कल्पना के पहले पार्टी और सरकार में उनका हक है। उन्होंने मंगलवार को परिवार और पार्टी के मुखिया शिबू सोरेन को लिखे पत्र में इसी दर्द का इजहार किया।
सीता सोरेन ने लिखा, ”मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ भी एक गहरी साजिश रची जा रही है। मैं अत्यन्त दुःखी हूं। आपके समक्ष अत्यन्त दुःखी हृदय के साथ अपना इस्तीफा प्रस्तुत कर रही हूं। मेरे पति दुर्गा सोरेन झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा और महान क्रांतिकारी थे। उनके निधन के बाद से ही मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार रहे हैं। पार्टी और परिवार के सदस्यों द्वारा हमें अलग-थलग किया गया है, जो कि मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक रहा है।”
उन्होंने आगे जिक्र किया, ”मैंने उम्मीद की थी कि समय के साथ स्थितियां सुधरेगी, परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। झारखडं मुक्ति मोर्चा को मेरे पति ने अपने त्याग, समर्पण और नेतृत्व क्षमता के बल पर एक महान पार्टी बनाया था, आज वह पार्टी नहीं रही। मुझे यह देख कर गहरा दुःख होता है कि पार्टी अब उन लोगों के हाथों में चली गई है, जिनके दृष्टिकोण और उद्देश्य हमारे मूल्यों और आदर्शों से मेल नहीं खाते।”