January 21, 2025
National

मध्य प्रदश में भाजपा-कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकते हैं छोटे दल

Small parties can become a problem for BJP-Congress in Madhya Pradesh

भोपाल, 8 अक्टूबर । मध्य प्रदेश में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और संभावना है कि जल्दी ही आचार संहिता भी लग सकती है। राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होगा, यह तय है मगर छोटे दल इन दोनों प्रमुख दलों की मुसीबत बढ़ा सकते हैं।

राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं और लगभग सभी स्थानों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला रहने वाला है। मगर कई सीटें ऐसी हैं, जहां छोटे दल या इन दोनों प्रमुख दलों से बगावत करने वाले नेता मुकाबला को त्रिकोणीय बनाने की हैसियत रखते हैं।

राज्य में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी ,आम आदमी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जय युवा संगठन चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी में है। अब तक के चुनाव में कोई भी तीसरा दल दहाई के अंक को छू नहीं पाया है, हां यह बात जरूर रही है कि कई स्थानों पर समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार पराजित उम्मीदवारों की श्रेणी में आए हैं।

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा आम आदमी पार्टी की ओर से उम्मीदवारों के नाम तय किया जा रहे हैं, वही जयस ने अब तक अपने पूरी तरह पत्ते नहीं खोले हैं। इन छोटे दलों का राज्य में प्रभाव है और वह अपनी क्षमता और जमीनी मजबूती के आधार पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है और यही स्थिति भाजपा और कांग्रेस के लिए चिंता में डाल देने वाली है।

सूत्रों का दावा है कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों के ही बागी इन छोटे दलों की तरफ रुख कर रहे हैं, कई ने तो दल बदल कर लिया है और वह उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर भले ही विपक्षी दलों ने गठबंधन कर लिया हो, मगर मध्य प्रदेश में अब तक किसी तरह के गठबंधन के संकेत नहीं मिले हैं। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सकारात्मक बातचीत की उम्मीद जताई है, वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता साधना भारती का कहना है कि राज्य में चुनाव दो विचारधाराओं के बीच है एक तरफ गांधी की विचारधारा है तो दूसरी तरफ गोडसे की। ऐसे में छोटे दलों को चिंतन और मंथन करना चाहिए साथ ही उसके बाद कोई फैसला।

राज्य की लगभग 50 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं जहां सपा, बसपा या आम आदमी पार्टी भले ही चुनाव न जीते, मगर चुनावी नतीजे को प्रभावित करने की क्षमता तो रखते ही हैं। लिहाजा दोनों प्रमुख राजनीतिक दल इन्हीं चुनाव परिणाम पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।

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