नई दिल्ली, 4 सितंबर । एक ऐसा नेता जो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के करीबी दोस्त हैं, भाजपा के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाते हैं। इन्होंने मोदी लहर में भी 2014 में लोकसभा चुनाव जीता। विदेशी बाला के प्यार में गिरफ्तार हुए और उसे अपना हमसफर बनाया। हम बात कर रहे है कांग्रेस के तेजतर्रार नेता गौरव गोगोई की।
4 सितंबर 1982 को जन्मे गौरव गोगोई के पिता तरुण गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे और गांधी परिवार के बेहद करीबी थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली में हुई। इसके बाद गौरव गोगोई ने दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल से ग्रेजुएशन किया। साल 2004 में उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से बीटेक किया। फिर एयरटेल में नौकरी की शुरुआत की।
उस वक्त गौरव गोगोई के पिता तरण गोगोई असम के मुख्यमंत्री थे। उनके पिता चाहते थे कि वो राजनीति में हाथ आजमाएं। लेकिन, उनका मन सियासत में आने का नहीं था। हालांकि, नौकरी से जल्द ही उनका मोह भंग हो गया और 2005 में नौकरी भी छोड़ दी। इसके बाद वो समाज सेवा में जुट गए। वह प्रवाह एनजीओ के साथ जुड़ गए। इसके तहत उन्होंने उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में काम किया।
एनजीओ में काम के दौरान वह जमीन पर सोते थे और खुद ही खाना बनाया करते थे। थोड़े समय के बाद उन्होंने एनजीओ का काम भी छोड़ दिया और एमबीए की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। जहां 2010 में उन्होंने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर की डिग्री हासिल की। एमबीए की पढ़ाई करने के बाद गौरव गोगोई संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की प्रतिबंध समिति में इंटर्नशिप कर रहे थे। इसी दौरान उनका दिल ब्रिटेन की रहने वाली एलिजाबेथ पर आ गया। जो वहीं इंटर्नशिप कर रही थी।
उनकी सादगी देखकर गौरव गोगोई उनके प्यार में गिरफ्तार हो गए। इसके बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया। उन्हें शादी करने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। हालांकि, गौरव गोगोई ने खुद मोर्चा संभालते हुए परिवार वालों को किसी तरह से मनाया। परिवार वालों से सहमति मिलने के बाद गौरव और एलिजाबेथ साल 2013 में शादी के बंधन में बंध गए।
2014 में पहली बार जब गौरव गोगोई चुनावी मैदान में उतरे तो उनकी पत्नी एलिजाबेथ भी काफी चर्चा में आई। वह जनता के बीच जाकर अपने पति के लिए वोट मांग रही थी। इतना ही नहीं चुनाव प्रचार के लिए एलिजाबेथ ने असमिया भाषा भी सीखी। लोगों को उनकी टूटी-फूटी असमिया भाषा भी काफी पसंद आई। नतीजे आए तो गौरव गोगोई पहली बार संसद पहुंच गए थे।
2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार 31 साल की आयु में गौरव गोगोई कांग्रेस के टिकट पर असम की कलियाबोर सीट से चुनावी मैदान में उतरे। यह सीट गोगोई परिवार के लिए ठीक वैसे ही थी जैसे गांधी परिवार के लिए रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट थी। परिवारिक सीट पर चुनाव लड़ना उनके लिए उतना आसान नहीं था। लेकिन, उन्होंने 93 हजार वोटों से जीत हासिल की।
इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में वो पहली बार अपने पिता के बिना चुनावी मैदान में उतरे। माना जा रहा था कि इस बार वो लोकसभा चुनाव में हार जाएंगे। लेकिन, उन्होंने चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को 2 लाख से अधिक वोटों से हराया। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी गौरव गोगोई ने शानदार जीत दर्ज की और लगातार तीसरी बार संसद पहुंचे।
पहली बार सांसद बनने के बाद गौरव गोगोई ने अपनी पहचान अक्रामक तेवर और भाषण शैली से बनाई। यही कारण था कि वो असम में कांग्रेस के सबसे बड़ा चेहरा बन गए। जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस महज 44 सीटों में ही सिमट गई। वहीं गौरव गोगोई चुनाव जीतकर सांसद बने।
लोकसभा में कांग्रेस कमजोर स्थिति में थी। ऐसे में उनके पास बेहतरीन मौका था कि वो अपनी अलग पहचान बना पाएं। वो संसद में मोदी सरकार के खिलाफ मुखर रहे। अपने भाषणों से वो हाईकमान का विश्वास जीतने में सफल रहे। जिसके बाद वो गांधी परिवार के करीबियों में एक हो गए।
हिमंत बिस्वा सरमा के भाजपा में शामिल होने के बाद असम में गौरव गोगोई कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे। हालांकि गोगोई परिवार और हिमंत सरमा के बीच दुश्मनी काफी पुरानी है।
दरअसल, गोगोई परिवार के बाद हिमंता सरमा कांग्रेस के सबसे बड़ा चेहरा और स्टार प्रचारक भी थे। 2011 के असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का श्रेय हिमंत सरमा को ही दिया जाता है। उन्हें लगता था कि तरुण गोगोई के रिटायरमेंट के बाद राज्य के सीएम वही बनेंगे। लेकिन, इसी बीच गौरव गोगोई कांग्रेस में आ गए। उन्हें कांग्रेस पार्टी में ज्यादा तवज्जो मिलने लगी। इससे हिमंत सरमा नाराज हो गए। दोनों के बीच जंग शुरू हो गई।
हिमंत सरमा ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की। लेकिन समस्या का समाधान नहीं निकल पाया। आखिरकार जुलाई 2014 में हिमंत सरमा ने हमेशा के लिए कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। इसके बाद अगस्त 2015 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।
हिमंत सरमा के भाजपा में शामिल होने के बाद गौरव गोगोई राज्य में कांग्रेस में अकेले बड़ा चेहरा रह गए। 2018 में वो पश्चिम बंगाल के प्रभारी भी बने। लोकसभा में भी उन्हें उपनेता बनाया गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में गौरव गोगोई को जोरहाट में हराने के लिए हिमंत सरमा ने अपनी पूरी कैबिनेट को लगा दिया।
इतना ही नहीं असम सीएम ने खुद कई दिनों तक इस सीट पर चुनाव प्रचार किया। भाजपा ने तोपोन कुमार गोगोई को गौरव गोगोई को हराने के लिए मैदान में उतारा। लेकिन, उसके बाद भी गौरव ने बाजी मार ली। इस जीत से गौरव गोगोई ने साबित कर दिया गया कि वो राज्य में कांग्रेस के कद्दावर चेहरा बन चुके हैं। कांग्रेस ने संसद में भी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी। राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बने तो उन्हें डिप्टी लीडर बनाया गया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में उनका कद कितना बड़ा है।