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भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी की कहानी, जिस डॉक्टर ने तकनीक ईजाद की उसी को आत्महत्या करनी पड़ी

Story of India's first test tube baby, the doctor who invented the technology had to commit suicide.

नई दिल्ली, 3 अक्टूबर । आपने धार्मिक कहानियों में अक्सर यह सुना होगा कि कई ऋषि, महापुरुष, देवी या भगवान के बच्चों का जन्म किसी ध्यानावस्था या किन्हीं अन्य अलग-अलग वजहों से हुआ है। अक्सर विज्ञान की जानकारी रखने वाले लोग इन पौराणिक घटनाओं को विज्ञान से जोड़ कर देखते हैं। जैसे महाभारत में टेस्ट ट्यूब के माध्यम से कृपि एवं कृपा के पैदा होने का उल्लेख है। इसी तरह अगस्त्य एवं वशिष्ठ के भी पैदा होने की बात लिखी है। ऋग्वेद में भी टेस्ट ट्यूब संबंधित श्लोक वर्णित है।

इसके अलावा तमाम अन्य पौराणिक कथाओं में कई महापुरुषों के पैदा होने की प्रक्रिया सामान्य पुरुषों से अलग होने की वजह से उन्हें ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ कहा जाता है।

क्या आपको पता है कि आधुनिक भारत में देश का पहला ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ कौन है? और कैसे उनका जन्म हुआ?

इसका श्रेय कोलकाता के डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय को जाता है। उन्होंने 1978 में ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ का परीक्षण किया था। यह परीक्षण तमाम ऐसी महिलाओं के लिए वरदान साबित हुई जो काफी कोशिशों के बाद भी मां नहीं बन पाती हैं। यह परीक्षण सफल रहा और इसके लगभग एक दशक बाद 6 अगस्त 1986 को भारत में टेस्ट ट्यूब की मदद से पहले बच्चे का जन्म हुआ। यह एक लड़की थी। उनका नाम कनुप्रिया अग्रवाल है, जो पुणे में रहती है और वो 10 साल के एक बच्चे की मां भी है।

हालांकि डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय की इस खोज ने ही उन्हें सामाजिक परिहास की वस्तु बना दिया। उनके इस परीक्षण की वजह से मेडिकल जगत ने उनका बहुत मजाक उड़ाया, जिसकी वजह से उन्होंने जून 1981 में आत्महत्या कर ली। उनका चमत्कार ही उनकी मौत की वजह बन गया। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी ने उनके इस रिसर्च को लोगों तक पहुंचाने का काम किया। इसे डॉक्टर आनंद कुमार को सौंप दिया। आनंद कुमार ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि देश में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करवाने वाले डॉक्टर मुखोपाध्याय ही थे।

देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का नाम उस समय हर्षा रखा गया था। वह देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से जानी जाने लगी। इस बच्ची के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. आनंद को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करवाने का श्रेय दिया जाने लगा। हालांकि इसके बाद डॉ. आनंद कुमार ने खुद ही इसका पूरा श्रेय डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय को दे दिया।

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