सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन, जिसका प्रमुख अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कई बार प्रदर्शित हुआ है, द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि सर्वेक्षण में शामिल 7,400 हरियाणा निवासियों में से लगभग 62 प्रतिशत सामान्य बातचीत के दौरान नियमित रूप से लिंग-आधारित अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं।
फाउंडेशन के संस्थापक और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक में प्रैक्टिस के प्रोफेसर सुनील जागलान ने रविवार को यहां कहा, “यह अध्ययन उन प्रतिभागियों पर आधारित है, जिनसे हमारी टीम ने फाउंडेशन की अंतर्राष्ट्रीय पहल ‘गाली बंद घर’ (दुर्व्यवहार मुक्त घर) के तहत राज्य के जींद, हिसार, गुरुग्राम और नूह जिले में 11 वर्षों से अधिक समय तक संपर्क किया था। इस पहल की शुरुआत 2014 में जींद जिले के मेरे पैतृक गांव बीबीपुर से हुई थी।”
जगलान ने बताया कि प्रतिभागियों में से लगभग 4,600 ने स्वीकार किया कि वे घर पर नियमित रूप से ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं।
उन्होंने बताया कि इस अध्ययन में पिछले 11 वर्षों में कई राज्यों के 70,000 से ज़्यादा लोगों को शामिल किया गया, जिनमें छात्र, अभिभावक, शिक्षक, डॉक्टर, पुलिसकर्मी, वकील और अन्य पेशेवर शामिल थे। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश में 11,300, मध्य प्रदेश में 8,400, राजस्थान में 6,100, पंजाब में 4,200, महाराष्ट्र में 3,800, और दिल्ली, गुजरात, बिहार, कश्मीर, उत्तराखंड, गोवा और पश्चिम बंगाल में भी ऐसे कई मामले सामने आए।
जगलान ने बताया कि दिल्ली में 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने लिंग-आधारित अपमानजनक भाषा का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया, उसके बाद पंजाब (78%), उत्तर प्रदेश और बिहार (74-74%) और राजस्थान (68%) का स्थान रहा। दूसरी ओर, कश्मीर में अभद्र भाषा का इस्तेमाल सबसे कम 15 प्रतिशत रहा, जबकि ओडिशा, तेलंगाना और पूर्वोत्तर राज्यों में भी यह दर काफ़ी कम देखी गई।
उन्होंने आगे कहा, “दिलचस्प बात यह है कि यह चलन सिर्फ़ पुरुषों तक ही सीमित नहीं है। अध्ययन में पाया गया कि 30 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों ने दैनिक बातचीत में ऐसी भाषा का इस्तेमाल या उसे बर्दाश्त करने की बात स्वीकार की। इसने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के बढ़ते प्रभाव को भी उजागर किया, जहाँ 20 प्रतिशत युवा ऑनलाइन गेम, सोशल मीडिया और ओटीटी सामग्री के संपर्क में आने के कारण अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं।”
जगलान ने कहा कि कई उत्तरदाताओं के लिए, गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल एक आदत बन गई है—यहाँ तक कि स्नेह या हास्य के भावों में भी। दरअसल, 30 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि जब तक चुटकुलों में किसी न किसी रूप में गाली-गलौज न हो, तब तक वे उनका आनंद नहीं ले पाते। जगलान ने आगे कहा कि ‘गाली बंद घर’ अभियान इसी मानसिकता का मुकाबला करने और इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए शुरू किया गया था कि घरों और समाज में ऐसी हानिकारक भाषा कितनी सामान्य हो गई है।