November 23, 2024
Punjab

सुखबीर बादल ने पंजाब के सीएम से पराली प्रबंधन के लिए किसानों की आर्थिक मदद की मांग की

चंडीगढ़, 23  नवंबर  शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को विज्ञापनों पर खर्च किए जा रहे 450 करोड़ रुपये का भुगतान दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस परियोजना के लिए करने का निर्देश दिया है, उसी प्रकार पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान को धान की पराली के प्रबंधन के लिए किसानों को वित्तीय सहायता देने का निर्देश दिया जाना चाहिये।

बादल ने कहा कि अब समय आ गया है कि पंजाब में आप सरकार को जवाबदेह ठहराया जाए। उन्‍होंने उन सभी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के ऑडिट का आह्वान किया जो रुकी हुई थीं क्योंकि राज्य उनके लिए धन जारी नहीं कर रहा था।

एसएडी प्रमुख ने कहा, “शहरी स्थानीय निकायों और ग्रामीण विकास के लिए धन जारी करने में कटौती के साथ-साथ आम आदमी को अकथनीय पीड़ा हो रही है और इसे न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से तुरंत ठीक करने की जरूरत है।”

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत का आदेश भी आंखें खोलने वाला था क्योंकि इसने आप सरकारों के उस तरीके पर से पर्दा उठा दिया जिसमें वे स्‍वयं के प्रचार के लिए सरकारी धन के दुरुपयोग कर रही थीं जबकि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए धन देने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की तरह, पंजाब में भी आप सरकार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए कोई पैसा जारी नहीं कर रही है, बल्कि प्रचार आधारित विज्ञापनों पर पैसा खर्च कर रही है।

बादल ने कहा, “स्थिति ऐसी हो गई है कि वृद्धावस्था पेंशन और शगुन (आशीर्वाद) योजना जैसे सामाजिक कल्याण लाभों के लिए भी पैसा जारी नहीं किया जा रहा है।”

पंजाब में आप सरकार को सुधार के लिए मजबूर करने के लिए शीर्ष अदालत से तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की अपील करते हुए एसएडी नेता ने कहा, “आप सरकार 2022 के चुनाव से पहले किए गए वादों के बावजूद किसानों को पराली प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित करने में विफल रही। उसने कहा था कि किसानों के खेतों से निकले पराली सरकार एकत्र करेगी और बदले में उन्‍हें भुगतान किया जायेगा।”

उन्होंने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि पंजाबियों की मेहनत की कमाई आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के एजेंडे को देश भर में फैलाने में बर्बाद की जा रही है, जबकि किसानों को फसल क्षति के मुआवजे और सभी महिलाओं को एक-एक हजार रुपये प्रति माह जैसे चुनावी वादे स्वप्न बनकर रह गये हैं।

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