मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर के बीच आज विधानसभा में राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) में कटौती, बढ़ते कर्ज और पूंजीगत व्यय में कमी के कारण विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के मुद्दे पर बहस हुई।
2025-26 के बजट प्रस्तावों पर बहस के दौरान सुखू ने कहा कि आरडीजी में कमी और जून 2022 में समाप्त होने वाले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे ने हिमाचल की वित्तीय मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उन्होंने कहा, “14वें और 15वें वित्त आयोग ने उदार आवंटन किया था, जिसके परिणामस्वरूप पांच साल के लिए आरडीजी के रूप में 40,000 करोड़ रुपये तक की बड़ी राशि प्राप्त हुई।”
उन्होंने कहा, “2025-26 के दौरान, आरडीजी घटकर 3,257 करोड़ रुपये रह जाएगा, जिसका बजट और पूंजीगत व्यय के आकार पर असर पड़ना तय है।”
सुखू ने कहा, “पिछली भाजपा सरकार को जीएसटी मुआवजे के रूप में 3,200 करोड़ रुपये और 1,600 करोड़ रुपये मिले थे। अगर आप एक अच्छे वित्त मंत्री होते, तो आपको चुनाव जीतने के लिए मुफ्त में पैसे बांटने के बजाय कर्ज का बोझ कम करना चाहिए था।” उन्होंने कहा कि मामले को बदतर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली के बाद ऋण जुटाने की सीमा तय कर दी और बाहरी फंडिंग को 2,900 करोड़ रुपये तक सीमित कर दिया।
ठाकुर ने सुखू पर पलटवार करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री पहले दिन से ही कर्ज लेने के लिए पिछली भाजपा सरकार और वित्तीय सहायता न देने के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। उन्होंने कहा, “1993 में हिमाचल पर कर्ज का बोझ नगण्य था, लेकिन अनावश्यक कर्ज लिया गया और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा गया। वास्तव में, अब कोई भी सरकार कर्ज लिए बिना काम नहीं कर सकती है।”
ठाकुर ने कहा, “क्या आपकी सरकार ने सत्ता में आने पर हमें नो ड्यूज सर्टिफिकेट दिया था? हमने आपकी देनदारियों को स्वीकार किया और कर्ज के बारे में इतना रोना-धोना नहीं किया, जैसा कि आप पहले दिन से करते आ रहे थे।”
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