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दिल्ली रिज क्षेत्र में पेड़ कटाई पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, डीडीए अधिकारियों पर जुर्माना

Supreme Court reprimands DDA officials for felling trees in Delhi Ridge area, fines them

दिल्ली के रिज क्षेत्र में पेड़ काटने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधिकारियों को अवमानना का दोषी पाया। कोर्ट ने प्रत्येक दोषी अधिकारी पर 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया, सिवाय डीडीए के चेयरमैन और तत्कालीन वाइस चेयरमैन के, जो अब इस पद पर नहीं हैं। हालांकि, कोर्ट ने अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद कर दी, लेकिन विभागीय जांच को जारी रखने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीडीए ने 1996 के आदेश का उल्लंघन किया, जिसमें रिज क्षेत्र में पेड़ काटने के लिए कोर्ट की पूर्व अनुमति जरूरी थी। कोर्ट ने इसे गंभीर अपराध माना, क्योंकि डीडीए ने न केवल पेड़ काटे, बल्कि यह तथ्य भी छिपाया कि पेड़ पहले ही काटे जा चुके थे। कोर्ट ने इसे ‘आपराधिक अवमानना’ करार देते हुए कहा कि यह न्याय व्यवस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. के. सिंह की बेंच ने माना कि यह मामला सत्ता के दुरुपयोग और प्रशासन के गलत निर्णय का है। हालांकि, पेड़ काटने का मकसद पैरामिलिट्री अस्पताल तक सड़क चौड़ी करना था, जो जनहित में था। इसलिए, कोर्ट ने इसे ‘प्रशासनिक भूल’ माना और सख्त कार्रवाई से बचते हुए सुधारात्मक कदमों पर जोर दिया।

कोर्ट ने दिल्ली सरकार और डीडीए को पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए व्यापक पौधरोपण करने का निर्देश दिया। इसके लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई है, जो रिज क्षेत्र में काटे गए पेड़ों की जगह नए पेड़ लगाने की योजना बनाएगी।

कमेटी कनेक्टिंग सड़क के दोनों ओर घने पेड़ लगाने की संभावनाएं तलाशेगी और समय-समय पर कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट सौंपेगी। डीडीए को सड़क का काम पूरा करने का भी आदेश दिया गया है।

कोर्ट ने सुझाव दिया कि जिन लोगों ने इस सड़क का लाभ उठाया, जैसे कि संपन्न व्यक्ति या संस्थाएं, उनसे पौधरोपण का खर्च वसूला जाए। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने डीडीए को कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि क्या पेड़ काटने का आदेश लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) ने दिया था। डीडीए के तीन अधिकारियों को पहले अवमानना नोटिस भी जारी किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के ‘ग्रीन लंग्स’ कहे जाने वाले रिज क्षेत्र में पेड़ काटने जैसे मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और प्रशासनिक जवाबदेही के लिए एक मिसाल है।

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