नई दिल्ली, 11 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि, मुस्लिम महिला अपने पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है। इस मामले पर याचिकर्ता के वकील वसीम कादिर ने कहा कि, यह एक ऐतिहासिक फैसला है। जो हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय की महिलाओं को कवर करता है।
उन्होंने बताया कि, सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता की मांग पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैसला सुनाया है। कोर्ट ने लैंड मार्क निर्णय करते हुए महिलाओं को सशक्त किया है। यह फैसला सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में नहीं दिया गया है, बल्कि यह कॉमन फैसला है, जो महिलाओं के स्टेटस को बढ़ाता है।
उन्होंने बताया, कोर्ट ने कहा कि, पति-पत्नी का अगर तलाक नहीं हुआ है और वो साथ रह रहे हैं, तो उनका ज्वाइंट बैंक अकाउंट होना चाहिए। पत्नी के खर्चे के लिए उसमें पैसे जमा किए जाने चाहिए। कोर्ट के फैसले में ऐसा ऑब्जर्वेशन पहले कभी नहीं हुआ।
भविष्य में इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देने के सवाल पर वकील ने कहा कि, इसमें चैलेंज करने की बात क्या है ? अगर कोर्ट ने कहा है कि हाउस वाइफ के पास कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं है, तो उसका ज्वाइंट अकाउंट खोला जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह जजमेंट, हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय की महिलाओं को कवर करता है। साथ ही यह सिर्फ तलाकशुदा स्थिति तक सीमित नहीं है, बल्कि साथ रहने के दौरान भी कुछ डायरेक्शन दिए गए हैं।
दरअसल, तेलंगाना के एक मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी तलाकशुदा पत्नी को भत्ते के रूप में 10 हजार रुपये देने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिला तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है।
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