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स्वामी अग्निवेश : राजनीति से सामाजिक कार्यकर्ता तक ऐसा रहा इस भगवाधारी का जीवन

Swami Agnivesh: From politics to social worker, this was the life of this saffron man

नई दिल्ली, 11 सितंबर । महात्मा गांधी, कार्ल मार्क्स और वैदिक धर्म की राह पर चलने वाले स्वामी अग्निवेश का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह शुरू से ही कुछ अलग करने की चाहत रखते थे। बचपन में ही माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद उनके नाना ने उनका पालन पोषण किया था।

माता-पिता ने उन्हें वेपा श्याम राव नाम दिया था, बाद में वह स्वामी अग्निवेश के नाम से पहचाने जाने लगे। उन्होंने अपने जीवन में धर्मार्थ, राजनीतिक, सामाजिक कार्यों में सक्रिय योगदान दिया था। इसके अलावा, उनके जीवन में कुछ विवाद भी जुड़े रहे।

स्वामी अग्निवेश के राजनीतिक जीवन की बात करें तो 1977 में वह हरियाणा विधानसभा से विधायक चुने गए थे। उन्हें हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री तक का भी पद दिया गया, मगर कुछ समय बाद विवादों के चलते उन्हें इस पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उनके कार्यकाल के दौरान मजदूरों पर लाठीचार्ज किया गया था जिसके बाद वह विवादों में आए थे। उनको न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, बल्कि बाद में उन्हीं की सरकार ने उन्हें दो बार गिरफ्तार भी किया और वह लगभग 14 दिनों तक जेल में रहे। इसके बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया था।

1981 में वह एक एनजीओ से जुड़े, जिसके बाद तेजी से बढ़ती बंधुआ मजदूरी के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई। बंधुआ मुक्ति मोर्चा से जुड़कर उन्होंने उस समय जगह-जगह आंदोलन के जरिए अपनी बात सरकार तक रखी। इसके बाद स्वामी अग्निवेश को राष्ट्रीय पहचान मिलने लगी। यही नहीं उन्होंने नक्सलवाद को लेकर भी काफी काम किया।

बात 6 अप्रैल 2010 की है जब छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के हमले में 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद सरकार के भी हाथ पांव फूल गए थे। जिसके बाद स्वामी अग्निवेश ने शांति के लिए रायपुर से लेकर दंतेवाड़ा तक पैदल मार्च किया। इसके बाद स्वामी अग्निवेश एक ऐसे चेहरे के तौर पर उभरे जो नक्सलियों से बात कर इस समस्या पर बातचीत कर समाधान का कोई रास्ता निकाल सकते थे।

उस समय की मनमोहन सिंह सरकार ने नक्सलियों से बात करने के लिए स्वामी अग्निवेश को चुना। बातचीत करने के लिए चुने जाने पर पूरे देश की निगाहें इस बातचीत पर टिकी हुई थी। तो दूसरी तरफ स्वामी अग्निवेश को नक्सलियों के साथ वार्ता के लिए काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था।

इसके बाद 2011 में स्वामी अग्निवेश अन्ना हजारे के आंदोलन से भी जुड़े थे। जिसमें उन्होंने देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। बाद में वह इस आंदोलन से अलग हो गए, मगर उनका विवादों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ था।

2005 में अग्निवेश का एक नया बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा कि भगवान जगन्नाथ पुरी के द्वार गैर हिंदुओं के लिए भी खोले जाने जाने चाहिए, जिसके बाद वह हिंदुओं के निशाने पर आ गए और चारों ओर से उन्हें आलोचना सहनी पड़ी।

विवाद यही नहीं थमा, उन्होंने 2011 में श्री अमरनाथ यात्रा के ऊपर भी बयान दिया। उन्होंने कहा वह मात्र बर्फ का है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वामी अग्निवेश को फटकार लगाई और कहा कि वह हिंदुओं की भावनाओं से न खेलें और इस तरह की बयानबाजी न करें।

स्वामी अग्निवेश ने अपने जीवन काल में बाल मजदूरी, कन्या भ्रूण हत्या से लेकर महिलाओं के लिए कई तरह के सामाजिक कार्यों में हिस्सा लिया। 2010 में वह टीवी रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ में भी नजर आए। 11 सितंबर 2020 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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