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तेलंगाना: स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग को 42 प्रतिशत आरक्षण पर लगी रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

Telangana: Supreme Court refuses to lift ban on 42% reservation for backward classes in local bodies

तेलंगाना सरकार को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। देश की शीर्ष अदालत ने राज्य में स्थानीय निकायों में पिछड़ी जातियों के लिए दिए गए 42 प्रतिशत आरक्षण पर लगी तेलंगाना हाईकोर्ट की अंतरिम रोक हटाने से इनकार कर दिया।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई निष्पक्ष रूप से और अपने मेरिट्स के आधार पर जारी रहनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार की स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) खारिज होने का असर हाईकोर्ट की कार्यवाही पर नहीं पड़ेगा।

दरअसल, तेलंगाना सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी कर राज्य के स्थानीय निकायों में पिछड़ी जातियों के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की गईं।

9 अक्टूबर को तेलंगाना हाईकोर्ट ने इस आदेश के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

साथ ही राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना पर भी फिलहाल स्टे लगाया है।

हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस जीएम मोहिउद्दीन की पीठ ने मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद तय की है। इस बीच, अदालत ने राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को चार हफ्तों के भीतर विस्तृत जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि तेलंगाना सरकार का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लंघन है, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय की गई थी।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य में पहले से ही अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू है। यदि पिछड़ी जातियों के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण जोड़ा जाता है तो कुल आरक्षण 67 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा, जो संविधान के अनुरूप नहीं है।

तेलंगाना के एडवोकेट जनरल ए सुदर्शन रेड्डी ने अदालत में दलील दी कि सरकार ने पंचायत राज अधिनियम की धारा 285-ए में संशोधन करके आरक्षण की सीमा बढ़ाने का पूरा अधिकार प्राप्त किया है।

इससे पहले पिछले सप्ताह भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर दायर एक अन्य याचिका को सुनने से इनकार कर दिया था। जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने तब कहा था, “अगर हाईकोर्ट ने स्टे आदेश नहीं दिया तो क्या आप हर बार अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट चले आएंगे?”

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