29 अक्टूबर का दिन पूरी दुनिया में ‘इंटरनेशनल इंटरनेट डे’ के रूप में मनाया जाता है। यह वही तारीख है, जब वर्ष 1969 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक कंप्यूटर से स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट के कंप्यूटर को पहली बार संदेश भेजा गया था। दो शब्द ‘एलओजीआईएन’ यानी ‘लॉगइन’ टाइप किए गए, लेकिन नेटवर्क उस समय सिर्फ ‘एलओ’ तक ही ट्रांसफर कर पाया। बस यहीं से इतिहास बन गया। यह ‘लो’ था, जिसने दुनिया को जोड़ने का काम किया।
आज जिस इंटरनेट से हम वीडियो कॉल करते हैं, शॉपिंग करते हैं, या सोशल मीडिया पर जीवन के हर पल साझा करते हैं, वह इसी एक छोटे से प्रयोग का नतीजा है। उस समय इसे ‘एआरपीएएनईटी’ कहा गया था— जो अमेरिका की रक्षा अनुसंधान एजेंसी द्वारा विकसित एक नेटवर्क प्रणाली थी। इसका उद्देश्य था अलग-अलग कंप्यूटरों को जोड़कर सूचनाओं का आदान-प्रदान आसान बनाना। किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले दशकों में यही नेटवर्क पूरी दुनिया को ‘डिजिटल ग्लोब’ में बदल देगा।
इंटरनेट डे हमें याद दिलाता है कि यह तकनीक सिर्फ सुविधा का साधन नहीं, बल्कि मानव सहयोग और जिज्ञासा का प्रतीक है। एक ऐसा मंच, जिसने सीमाएं मिटा दीं। विचारों, कला, विज्ञान, और संवाद को एक सूत्र में बांध दिया।
आज इंटरनेट हर सेकंड बदल रहा है। 5जी, एआई, क्लाउड कंप्यूटिंग और क्वांटम इंटरनेट जैसी तकनीकें इसकी रफ्तार को और तेज बना रही हैं। लेकिन इस तेजी के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ी है। साइबर सुरक्षा, डेटा प्राइवेसी और डिजिटल नैतिकता अब इंटरनेट के उतने ही अहम हिस्से हैं जितना उसकी स्पीड और एक्सेस।
इंटरनेट सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि “साझा सोच की ताकत” है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के मुताबिक भारत में 1,002.85 मिलियन इंटरनेट सब्सक्राइबर हैं, तो पूरी दुनिया के ‘5 अरब से ज्यादा लोग’ इंटरनेट से जुड़े हैं, यानी मानव इतिहास में सबसे बड़ा सामाजिक नेटवर्क बन गया है इंटरनेट!

