महाकुंभ नगर 20 जनवरी। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ की महिमा, सनातन संस्कृति, अध्यात्म और जीवन के उद्देश्य जैसे गूढ़ और जटिल विषयों पर करौली शंकर महादेव ने आईएएनएस से खास बातचीत की।
करौली शंकर महादेव ने कुंभ की व्यवस्था को शानदार बताया। उन्होंने कहा कि यहां अद्वितीय और अलौकिक वातावरण है। हमारे गुरुओं की उपस्थिति अपने आप में एक आभा है। इसलिए सनातन का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कुंभ में जाना चाहता है। जो जीवन को समझने में असफल हो रहे हैं, उनके लिए कुंभ में आना और भी महत्वपूर्ण है। उनको संतों का सानिध्य मिलता है। इस महाकुंभ में सबका स्वागत है। गली-गली इसका प्रचार है और सब लोग यहां आना चाहते हैं। यहां अधिक से अधिक लोगों को आना चाहिए और शरीर के साथ-साथ मन की भी स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए।
सनातन धर्म में महाकुंभ पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सनातन की प्रतिष्ठा पौराणिक काल से है। विशेष नक्षत्र में महाकुंभ का आयोजन होता है और इसमें जो भी व्यक्ति आता है, जरूरी नहीं कि वह गंगा स्नान करें। मानसिक रूप से भी लोग इस उद्देश्य से जुड़ते हैं। यह चमत्कार नहीं, नियम है। जब हम ग्रह नक्षत्र के विशेष सहयोगों में, विशेष रूप से, विशेष मुहूर्त में स्नान करते हैं, तो हमें उसका विशेष फल मिलता है।
महाकुंभ के सबसे बड़े चमत्कार पर उन्होंने कहा, “सबसे बड़ा चमत्कार स्वयं को जानना है। व्यक्ति स्वयं को अगर जान ले, समझ ले, फिर कुछ बचता नहीं है। वही समझदारी विकसित होनी चाहिए। इस अद्भुत महाकुंभ में यही चमत्कार है। महाकुंभ में जो अमृत छलक रहा है, उसको अपने मस्तिष्क में डालकर ले जाएं। शुद्ध विचार, धार्मिक विचार और आध्यात्मिक विचार आप लेकर यहां से जाएंगे। यह जरूरी नहीं कि आप कुंभ में स्नान करें। जो महाकुंभ में आ रहा है, वह किसी भी प्रकार से अपनी सेवा दे रहा है। यदि स्नान नहीं कर पा रहे हैं, तो ऋषि मुनियों, गुरुओं, त्रिवेणी संगम का नाम लेकर यहां का एक लोटा जल अपने घर पर स्नान के समय मिलाकर नहा लें। ऐसे भी उद्धार हो जाएगा।”
हिंदू संस्कृति और विश्व पर इसके प्रभाव के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “हिंदू संस्कृति पूरे विश्व के आकर्षण का केंद्र है। सनातन धर्म का अर्थ है जो सदा है, सदा रहेगा, जो कभी मिट नहीं सकता। व्यवस्थाओं को समझना है, व्यवस्था में जीना है। ऐसा करने से सबका भला होता है। सनातन का अर्थ ही है कि जो पंच तत्व हैं, जो सदा से थे, हैं और सदा रहेंगे। इस व्यवस्था को समझना है और इसमें जीना है। ऐसा करने से फिर सुख अंदर पैदा होता है और उसे सुख की निरंतरता भी होती है, जिसे आनंद कहते हैं। तो उस आनंद को लेने के लिए यह व्यवस्था है। सनातन धर्म में तो यह आनंद हर व्यक्ति लूटना चाहता है। इसलिए विश्व का व्यक्ति भी इस ओर आकर्षित होता है। हिंदू सनातन संस्कृति का ही आज बोलबाला है। हम अपने ऋषि मुनियों का, अपने गुरुओं के आदेशों का, उनके वचनों का पालन करते हैं।”
उन्होंने मानव प्रवृत्ति पर बात करते हुए बताया, “जब मनुष्य भोग से ऊब जाता है, तो त्याग की ओर जाता है। फिर त्याग से ऊबकर भोग की ओर चला जाता है। यह सब चलता रहता है। लेकिन जब व्यक्ति स्वयं को समझ लेता है, तो त्याग और भोग दोनों से बचता है। फिर वह सिर्फ वस्तुओं का सदुपयोग करता है।”
करौली शंकर महादेव ने संतों के भेष में आडंबर और प्रपंच रचने वाले लोगों के प्रति भी अपनी राय दी। उन्होंने कहा, “संतों के बीच ग्लैमर, ध्यान आकर्षित करने जैसे आडंबर भी मौजूद हैं। ऐसे लोगों को स्थान नहीं देना चाहिए। वे अगर शांति से ध्यान साधना करें, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन ग्लैमर का स्थान नहीं है। यह आंतरिक ग्लैमर का स्थान बिल्कुल भी नहीं है। इन चीजों से स्वयं ही बचना चाहिए। मेरा ऐसा मानना है कि गुरुओं और गुरु परंपराओं से जुड़े जितने भी मान्य संत हैं, इनकी बड़ी मर्यादा है और हिंदू सनातन संस्कृति की अपनी गरिमा है।”
करौली शंकर ने कहा कि यह सहिष्णु संस्कृति है। यह पालने वाली, पोषण करने वाली संस्कृति है। यह विद्रोह की संस्कृति नहीं है। हमारे महापुरुषों ने, हमारे ऋषि मुनियों ने जिस गरिमा को बनाए रखने में अपना सर्वस्व बलिदान किया, पूरी परंपराएं बलिदान की हैं, उसका हमें जरूर ध्यान रखना है कि हम इससे भटके नहीं। हमें अति उत्साह में भटकना नहीं है। न ही कभी कानून को अपने हाथ में लेना है। हमें लकीर को छुए बिना अपनी लकीर को बड़ा कर लेना है। सनातन संस्कृति के लोगों को कानून के तहत संरक्षण मिलेगा। इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि इस समय समाज में जीने के लिए हमें संविधान को सर्वोपरि रखना है।