नाहन, 4 अगस्त हिमाचल प्रदेश के संस्थापक और राज्य के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार की 118वीं जयंती उनके जन्मस्थल सिरमौर जिले के चन्हालग में धूमधाम से मनाई गई। कार्यक्रम का आयोजन जिला भाषा एवं संस्कृति विभाग और मां ज्वाला नगरकोटी मंदिर विकास समिति चन्हालग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
डॉ. परमार को हिमाचल प्रदेश का वास्तुकार और संस्थापक माना जाता है डॉ. परमार का जन्म 1906 में चनालग गांव के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता सिरमौर रियासत के तत्कालीन शासक के सचिव थेउन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा नाहन से प्राप्त की और बाद में लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया। डॉ. परमार ने लखनऊ के कैनिंग कॉलेज से एलएलबी और एमए की पढ़ाई पूरी की और 1944 में लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
2 मई 1981 को शिमला के स्नोडन अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।
दिन की शुरुआत सुबह एक स्मारक पदयात्रा से हुई और लगभग 150 प्रतिभागियों ने डॉ. परमार की स्मृति को सम्मानित करते हुए 2 किमी की यात्रा की। यह पदयात्रा समुदाय के उस नेता के प्रति गहरे सम्मान और प्रशंसा का प्रतिबिंब थी, जिन्होंने हिमाचल प्रदेश की पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सिरमौर के डिप्टी कमिश्नर सुमित खिमटा ने इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। उन्होंने डॉ. परमार की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की, इसके बाद मंदिर परिसर में वृक्षारोपण समारोह का आयोजन किया गया। अपने संबोधन में डीसी खिमटा ने “प्रजा मंडल” आंदोलन में डॉ. परमार की सक्रिय भागीदारी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डॉ. परमार के नेतृत्व और अथक प्रयासों ने हिमाचल प्रदेश को एक अलग पहचान दिलाने और राज्य की भाषाई, कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डीसी ने डॉ परमार की विरासत को जारी रखने के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “डॉ परमार द्वारा बताए गए मार्ग और आदर्शों का पालन करना ही उन्हें हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है।”
इस अवसर पर रमेश शास्त्री, लाना बागा के प्रधान कुलदीप जसवाल, राजिंदर सिंह और अन्य सहित स्थानीय नेताओं ने भी अपने विचार साझा किए।
समारोह का एक महत्वपूर्ण आकर्षण डॉ परमार के परिवार के सदस्यों को सम्मानित करना था। भाषा और संस्कृति विभाग ने उनके पोते आनंद परमार, उनकी पोती आशा परमार, उनके बेटों यश परमार और ज्योतिर परमार के साथ-साथ उनकी पोती देविका परमार को सम्मानित किया।
इस कार्यक्रम में बौनल के हाटी सांस्कृतिक समूह के सांस्कृतिक प्रदर्शनों ने जान डाल दी, जिसमें पारंपरिक ‘सिरमौरी नाटी’ और चूड़ेश्वर लोक नृत्य समूह ने सिंघाटू नृत्य का प्रदर्शन किया, जिसमें संगीत वाद्ययंत्र प्रदर्शन भी शामिल थे।
उपस्थित लोगों में पीडब्ल्यूडी, सराहन के कार्यकारी अभियंता; कृषि विभाग, नाहन के उप निदेशक; लाना बागा ग्राम पंचायत के प्रधान, सीडीपीओ, सराहन, तथा राजगढ़ डीएसपी मौजूद थे।
जिला भाषा अधिकारी कांता नेगी ने सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। मंदिर विकास समिति द्वारा आयोजित सामुदायिक भोज के साथ समारोह का समापन हुआ।
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