सामाजिक समरसता के सतत विस्तार के साथ लोक कल्याण ही नाथपंथ का मूल है। आधुनिक कालखंड में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ, ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ द्वारा विस्तारित सामाजिक समरसता के अभियान की पताका वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फहरा रहे हैं। रंगों के प्रतीक रूप में उमंग और उल्लास का पर्व होली भी गोरक्षपीठ के सामाजिक समरसता अभियान का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस पीठ की विशेषताओं में छुआछूत, जातीय भेदभाव और ऊंच-नीच की खाई पाटने का जिक्र सतत होता रहा है। ऐसे में गोरक्षपीठ की अगुवाई वाला गोरखपुर का रंगोत्सव सामाजिक संदेश के ध्येय से विशिष्ट है। गोरक्षपीठ की विशेषताओं में छुआछूत, जातीय भेदभाव और ऊंच-नीच की खाई पाटने का जिक्र सतत होता रहा है।
गुरु गोरखनाथ की साधना स्थली गोरखपुर में होली का उल्लास सामाजिक समरसता के चटक रंगों में उफान पर होता है। होलियाना माहौल में यहां निकलने वाली दो प्रमुख शोभायात्राएं खास संदेश देते हुए पूरे प्रदेश के लिए आकर्षण का केंद्र बनती हैं। इन दोनों शोभायात्राओं (होलिकादहन और होलिकोत्सव) में गोरक्षपीठ की सहभागिता होने से गोरखपुर का रंगपर्व दशकों से विशिष्ट बना हुआ है।
इन शोभायात्राओं में सामाजिक समरसता और समतामूलक समाज का प्रतिबिंब नजर आता है। बतौर गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद शोभायात्राओं में शामिल होते हैं। इस साल भी 13 मार्च की शाम को पांडेयहाता से निकलने वाली होलिका दहन शोभायात्रा तथा 14 मार्च की सुबह घंटाघर से निकलने वाली भगवान नृसिंह की रंगभरी शोभायात्रा में सीएम योगी सम्मिलित होकर समरसता के रंग को और चटक करेंगे।
सामाजिक समरसता का स्नेह बांटने के लिए ही गोरक्षपीठाधीश्वर दशकों से होलिकादहन तथा होलिकोत्सव (भगवान नृसिंह की रंगभरी शोभायात्रा) में शामिल होते रहे हैं और यह क्रम उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी बाधित नहीं हुआ।
गोरखनाथ मंदिर परिसर में परंपरागत विधि-विधान पूर्वक होलिका दहन किया जाता है। भस्म का तिलक लगाकर गोरक्षपीठाधीश्वर पावन सनातन परंपरा को अपने माथे लगाते हैं। गोरक्षपीठाधीश्वर की अगुवाई में गोरखनाथ मंदिर में होलिकोत्सव की शुरुआत होलिकादहन या सम्मत की राख से तिलक लगाने के साथ होती है। इस परंपरा में एक विशेष संदेश निहित होता है। होलिकादहन हमें भक्त प्रह्लाद और भगवान श्रीविष्णु के अवतार भगवान नृसिंह के पौराणिक आख्यान से भक्ति की शक्ति का अहसास कराती है। होलिकादहन की राख से तिलक लगाने के पीछे का संदेश है, भक्ति की शक्ति को सामाजिकता से जोड़ना।
इस परिप्रेक्ष्य में गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कथन सतत प्रासंगिक है, ”भक्ति जब भी अपने विकास की उच्च अवस्था में होगी तो किसी भी प्रकार का भेदभाव, छुआछूत और अस्पृश्यता वहां छू भी नहीं पाएगी।”
भक्ति और सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए ही गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ होलिकादहन और भगवान नृसिंह शोभायात्रा में अनवरत शामिल होते रहे हैं। दशकों से होलिका दहन और होलिकोत्सव शोभायात्रा में गोरक्षपीठ की सहभागिता ने यहां के रंगपर्व को समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश के आकर्षण का केंद्र बना दिया है।
गोरखपुर में भगवान नृसिंह रंगोत्सव शोभायात्रा की शुरुआत अपने गोरखपुर प्रवासकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख ने 1944 में की थी। गोरखनाथ मंदिर में होलिकादहन की राख से होली मनाने की परंपरा इसके काफी पहले से जारी थी। नानाजी का यह अभियान होली के अवसर पर विकृति व फूहड़ता दूर करने के लिए था। नानाजी के अनुरोध पर इस शोभायात्रा का गोरक्षपीठ से भी गहरा नाता जुड़ गया।
ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के निर्देश पर महंत अवेद्यनाथ शोभायात्रा में पीठ का प्रतिनिधित्व करने लगे और यह गोरक्षपीठ की होली का अभिन्न अंग बन गया। 1996 से योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी अगुवाई में न केवल गोरखपुर बल्कि समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामाजिक समरसता का विशिष्ट पर्व बना दिया।
अब इसकी ख्याति मथुरा-वृंदावन की होली सरीखी है और लोगों को इंतजार रहता है योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाले भगवान नृसिंह शोभायात्रा का। पांच किलोमीटर से अधिक दूरी तय करने वाली शोभायात्रा में पथ नियोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता करते हैं और भगवान नृसिंह के रथ पर सवार होकर गोरक्षपीठाधीश्वर रंगों में सराबोर हो बिना भेदभाव सबसे शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।