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आरक्षण बचाने को लेकर बिहार में शुरू हुई लड़ाई खटाखट, फटाफट, धकाधक तक पहुंची

The fight that started in Bihar to save reservation quickly reached a breaking point.

पटना, 31 मई । लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रचार गुरुवार को थम गया। अंतिम दौर की लड़ाई के बाद यह तय माना जा रहा है कि मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच होगा। करीब ढाई महीने के चुनाव प्रचार के दौरान कई मुद्दे उठे और कई मुद्दे गौण रहे। इस बीच, नेताओं के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर भी जारी रहा।

इस चुनाव के पहले चरण के मतदान को लेकर आरक्षण और संविधान खत्म करने के लेकर शुरू हुई सियासी लड़ाई खटाखट, फटाफट, धकाधक तक पहुंच गई और लोगों ने भी इसका खूब आनंद लिया।

बिहार में नौकरियों को लेकर दोनों गठबंधनों के बीच श्रेय लेने की होड़ मची रही। राजद ने बिहार में पिछले दिनों नौकरी देने का श्रेय पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को देने को लेकर इस चुनाव में जबरदस्त फील्डिंग सजाई। उसने लोगों तक यह बात पहुंचाने की कोशिश की कि उनकी वजह से ये नौकरियां संभव हो पाई हैं। लेकिन जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे लेकर मोर्चा संभाला और एनडीए के नेताओं ने राजद और नीतीश कुमार के कार्यकाल में नौकरी देने की तुलना सार्वजनिक मंचों से करनी शुरू की तब एनडीए ने जमकर पलटवार किया।

इधर, राजद ने संविधान, आरक्षण और लोकतंत्र बचाने की मुहिम से इस चुनाव को जोड़ने का भरसक प्रयास किया। लेकिन इसी बीच, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद द्वारा मुसलमानों को आरक्षण देने वाले बयान ने एनडीए नेताओं को बड़ा मुद्दा दे दिया और चुनाव के अंतिम चरण तक एनडीए ने इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार की रैलियों में इस बयान को हवा देकर एनडीए के पक्ष में माहौल तैयार करते दिखे। भाजपा पिछडों और अति पिछड़ों के आरक्षण को मुसलमानों को देने की बात कर इस समाज को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करती रही।

इधर, अयोध्या में प्रभु श्रीराम को भव्य मंदिर में स्थापित किये जाने और सीतामढ़ी में मां जानकी के भव्य निर्माण कराने के वादे को भी भाजपा ने मुद्दा बनाया। चैत्र नवरात्र में हेलीकॉप्टर में तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी का मछली खाने का वीडियो वायरल होने पर एनडीए ने इसे सनातन से जोड़कर बड़ा मुद्दा बना दिया। हालांकि, अंतिम चरण के मतदान के ऐन पहले बिहार की राजनीति में खटाखट, फटाफट, सफाचट और धकाधक जैसे शब्दों ने मतदाताओं का ध्यान खूब आकर्षित किया।

पांचवें चरण के मतदान के ठीक बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी मैदान में इन शब्दों का इस्तेमाल किया। जिसके बाद बिहार में मुख्य विपक्षी दल ने अपने विरोधियों पर हमले के लिए इन शब्दों को हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

मंच से तेजस्वी यादव अपनी सभाओं में कहते रहे, मिजाज रखिये टनाटन, टनाटन, टनाटन, मतदान के दिन वोट डालिए खटाखट, खटाखट, खटाखट। चार जून के बाद भाजपा हो जाएगी सफाचट, सफाचट, सफाचट। नौकरी मिलेगी फटाफट, फटाफट, फटाफट। दीदी के खाते में एक लाख जाएंगे सटासट, सटासट, सटासट।

वैसे, इस बयान को लेकर राजद के विरोधी भी चुप नहीं रहे। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी सरीखे नेता तेजस्वी को उसी अंदाज में जवाब देते दिखे, कहा चार जून को इनके आंसू गिरेंगे धकाधक, धकाधक, धकाधक। ईवीएम पर आरोप लगेगा फटाफट, फटाफट, फटाफट। कइयों को आएगी मिर्गी चटाचट, चटाचट, चटाचट।

बहरहाल, दोनों गठबंधनों के नेता इस चुनाव में अपने सुविधानुसार मुद्दे उठाते रहे और उसको लेकर जनता के बीच भी पहुंचे। लेकिन मतदाताओं को ये मुद्दे कितने पसंद आए और किस दल के नेताओं पर लोगों ने विश्वास किया, इसका पता चार जून को ही पता चल सकेगा जब मतों की गिनती होगी।
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