January 31, 2025
Sports

‘द आयरन लेडी’: ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला एथलीट, 19 सितंबर से है खास कनेक्शन

‘The Iron Lady’: India’s first female athlete to win an Olympic medal, has a special connection with September 19

 

नई दिल्ली ‘ओवर-वेट’ या पुराने जमाने की खिलाड़ी कह कर जिस एथलीट का दुनिया मजाक उड़ाती थी, उसने महज कुछ जादुई क्षणों में उन आलोचनाओं को प्रशंसा में तब्दील कर दिया। 19 सितंबर 2000, ये वही तारीख है जब भारोत्तोलक (वेटलिफ्टर) कर्णम मल्लेश्वरी ने ओलंपिक पदक जीता था। वो इस मुकाम को हासिल करने वाली भारत की पहली महिला एथलीट भी हैं।

सिडनी 2000 ओलंपिक में कर्णम ने ये कारनामा कर एक बड़ा मुकाम हासिल किया। कुल 240 किलोग्राम में उन्होंने स्नैच श्रेणी में 110 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 130 किलोग्राम भार उठाते हुए कांस्य पदक जीता। तब उन्होंने वेटलिफ्टिंग के 69 किग्रा वर्ग में यह पदक जीता था।

उनका जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में 1 जून 1975 को हुआ था। 12 साल की उम्र से उन्होंने वेटलिफ्टिंग का अभ्यास शुरू कर दिया और इसमें करियर देखने लगीं।

मल्लेश्वरी खेलों के क्षेत्र में 1989 में आईं, जब वह केवल 14 वर्ष की थी। धीरे-धीरे वो नाम कमाने लगी। पुणे में हुए राष्ट्रीय खेलों में मल्लेश्वरी ने विश्व-रिकार्ड तोड़ दिया। जर्मनी में हुई विश्व चैंपियनशिप में वह पांचवें स्थान पर रही। फिर अगले वर्ष बुलगारिया में हुई विश्व चैंपियनशिप में अपना स्तर सुधार लिया। 1995 में चीन में हुई विश्व चैंपियनशिप में ‘जर्क’ में मल्लेश्वरी ने 54 किलो वर्ग में नया विश्व रिकार्ड बनाते हुए 3 स्वर्ण पदक प्राप्त किए। उनकी ऐतिहासिक उपलब्धियों के बदौलत वो ‘द आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर हैं।

हैरानी की बात यह है कि ओलंपिक में उनके पदक की उम्मीद किसी ने नहीं की थी। जब उनका चयन हुआ तो उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। मगर किस्मत का खेल देखिए उस ओलंपिक में भारत की झोली में एकमात्र मेडल आया, जो कर्णम मल्लेश्वरी ने जीता था।

मल्लेश्वरी को 1995 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 1996 में उन्हें ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ तथा 1997 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। मंच कोई भी हो, लेकिन ‘जीत हर कीमत पर’ का इरादा रखने वाली इस वेटलिफ्टर की जिंदगी संघर्ष और कामयाबी के अदभुत कहानी रही है। हाल ही में वह दिल्ली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की पहली कुलपति (वाइस चांसलर) बनी हैं।

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