August 1, 2025
National

सावन के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, बन रहा है ‘अशुभ योग’

The ninth day of the Shukla Paksha of Sawan is creating an ‘inauspicious yoga’

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि शनिवार को पड़ रही है। इस दिन आडल योग का निर्माण भी हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इसे अशुभ योग माना जाता है, इस दिन सूर्य कर्क राशि में रहेंगे और चंद्रमा रात के 11 बजकर 52 मिनट तक तुला राशि में रहेंगे, इसके बाद वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे।

दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजे से शुरू होकर 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह के 09 बजकर 05 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।

आडल योग, ज्योतिष में एक अशुभ योग माना जाता है; इसका निर्माण नवरात्रि के पहले दिन साल 2022 में हुआ था। इसे शुभ कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता, साथ ही इस दिन शुभ कार्य भी वर्जित हैं।

शनिवार का दिन होने के कारण शनि देव की पूजा का विशेष महत्व है। कई लोग शनिदेव को भय की दृष्टि से भी देखते हैं, लेकिन यह धारणा गलत है। ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को संघर्ष देकर सोने की तरह चमकाते हैं।

शनि देव सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं, इसलिए उन्हें छाया पुत्र भी कहा जाता है। उनके बड़े भाई यमराज हैं, जो मृत्यु के बाद व्यक्ति के कर्मों का फल देते हैं, जबकि शनि देव व्यक्ति को उनके वर्तमान जीवन में ही उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। जब शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चलती है, तो व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे आर्थिक संकट, नौकरी में समस्या, मान-सम्मान में कमी और परिवार में कलह।

ऐसे में शनिवार का व्रत शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में आने वाली समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। श्रावण मास में इस व्रत को रखने का खास महत्व है। इसके अलावा, ये व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से शुरू किया जा सकता है (सावन में नहीं)। मान्यताओं के अनुसार, 7 शनिवार व्रत रखने से शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति मिलती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होने लगती है।

शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं, उन्हें गुड़, काले वस्त्र, काले तिल, काली उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें और उनके सामने सरसों के तेल का दिया भी जलाएं। रोली, फूल आदि चढ़ाने के बाद जातक को शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए, साथ ही सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का भी पाठ करना चाहिए और राजा दशरथ की रचना ‘शनि स्तोत्र’ का पाठ भी करना चाहिए। पूजन के बाद ‘शं शनैश्चराय नम:’ और ‘सूर्य पुत्राय नम:’, छायापुत्राय नम: का जाप करना चाहिए।

मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर शनिदेव का वास होता है। हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना और छाया दान करना (सरसों के तेल का दान) बेहद शुभ माना जाता है और इससे नकारात्मकता भी दूर होती है और शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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