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‘एक और द्रोणाचार्य’ नाटक ने शंकर शेष को दिलाई थी शोहरत, फिल्म ‘दूरियां’ के लिए मिला था फिल्मफेयर अवॉर्ड

The play 'Ek Aur Dronacharya' had brought fame to Shankar Shesh, he had received the Filmfare Award for the film 'Dooriyaan'.

नई दिल्ली, 2 अक्टूबर । ‘फंदी’, ‘एक और द्रोणाचार्य’, ‘रक्तबीज’ ये वो नाटक हैं, जिन्हें देशभर में ना केवल खूब सराहा गया, बल्कि इसके लेखक ने भी राष्ट्रीय स्तर पर जमकर वाहवाही बटोरी। हिंदी के प्रसिद्ध नाटककार तथा सिनेमा कथा लेखक शंकर शेष किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।

शंकर शेष का जन्म 2 अक्टूबर 1933 को बिलासपुर में हुआ था। उन्होंने 40 साल की उम्र में नाटक लिखना शुरू किया था। उन्हें ‘एक और द्रोणाचार्य’ से देशभर में पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने लगभग आठ सालों के दौरान 20 नाटकों की रचना की। ‘मायावी सरोवर’, ‘शिल्पी’, ‘बिन बाती के दीप’, ‘पोस्टर’, ‘कोमल गांधार’, ‘रक्तबीज’ जैसे नाटकों ने उनकी सफलता में चार-चांद लगाने के काम किए।

शंकर शेष की उच्च शिक्षा नागपुर और मुंबई में हुई। बताया जाता है कि वह पढ़ाई में तो अच्छे ही थे, साथ ही उनका कम उम्र से ही कविताओं की ओर झुकाव होने लगा था। हालांकि, उन पर जिम्मेदारियां आ गईं और वह मुंबई में एक बैंक में हिंदी अधिकारी के पद पर काम करने लगे। लेकिन, इस बीच वह हिंदी अधिकारी के पद पर नियुक्त होने के दौरान भी नाटक और लेखनी में हाथ आजमाते रहे। हिंदी के साथ-साथ वह मराठी भाषा में भी निपुण थे। उन्होंने कुछ मराठी नाटकों का हिंदी में अनुवाद भी किया।

शंकर शेष ने 40 साल की उम्र में लिखना शुरू किया और कुछ ही समय में करीब 20 नाटकों की रचना कर डाली। उनका लिखा ‘एक और द्रोणाचार्य’ सबसे लोकप्रिय नाटक था। उनके लिखे नाटक ‘घरौंदा’ पर फिल्म भी बनाई गई। ‘घरौंदा’ पहला नाटक था, जिसका मंचन बाद में हुआ और फिल्म पहले बनाई गई।

शंकर शेष की गिनती अपने समय के महानतम लेखकों में होती थी। उनकी रचनाओं में समाज से जुड़ी चीजों का जिक्र जरूर होता था। उन्होंने ‘रत्नगर्भ’, ‘रक्तबीज’, ‘बाढ़ का पानी’, ‘पोस्टर’, ‘चेहरे’, ‘राक्षस’, ‘मूर्तिकार’, ‘घरौंदा’ जैसे नाटक लिखे, जिसने समाज को आईना दिखाने का काम किया। शंकर शेष को ना केवल हिंदी के श्रोताओं ने पढ़ा, बल्कि उनकी लिखी रचनाओं को मराठी और अंग्रेजी के श्रोता भी बहुत सम्मान देते थे। वह अपने स्वभाव की वजह से भी काफी मशहूर थे, वह दोस्तों पर जान छिड़कते थे और बच्चों के लिए पिता से अधिक थे। फिल्म ‘दूरियां’ की कहानी के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। शंकर शेष का 28 नवंबर 1981 को निधन हो गया।

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