N1Live Uttar Pradesh संतों ने जिस संकल्प के साथ जीवन जिया, अयोध्या में सभी ने 22 जनवरी 2024 को उसे मूर्त रूप लेते देखा : सीएम योगी
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संतों ने जिस संकल्प के साथ जीवन जिया, अयोध्या में सभी ने 22 जनवरी 2024 को उसे मूर्त रूप लेते देखा : सीएम योगी

The resolve with which the saints lived their lives, everyone saw it taking tangible form in Ayodhya on 22 January 2024: CM Yogi

वाराणसी, 4 अप्रैल । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमारी पीढ़ी सौभाग्यशाली है, जिसने समृद्ध विरासत को अपनी आंखों के सामने देखा है। पूज्य संतों की लंबी विरासत ने जिस संकल्प के साथ पूरा जीवन जिया था, सभी ने 22 जनवरी 2024 को अयोध्या धाम में उसे मूर्त रूप लेते हुए देखा, जब काशी के सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करकमलों से 500 वर्ष बाद श्रीरामजन्मभूमि के भव्य मंदिर में रामलला विराजमान हुए।

मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को कश्मीरीगंज स्थित श्रीरामजानकी मंदिर का भूमि पूजन किया। उन्होंने यहां दर्शन-पूजन किया और गायों को गुड़ भी खिलाया।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व, संतों और अशोक सिंघल के सानिध्य में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन तेज गति से बढ़ा। जब लोग कहते थे कि यह काम असंभव है, तब आंदोलन के केंद्र बिंदु अशोक सिंघल जी कहते थे कि कोई कार्य असंभव नहीं है। पूज्य संत भी कहते थे कि यह हमारे जीवन का संकल्प है और हम लोग सफल होंगे। इस अभियान से मेरे पूज्य गुरुदेव, दादा गुरु, परमहंस रामचंद्र दास जी महाराज, पूज्य नृत्य गोपाल दास जी महाराज, सतुआ बाबा आदि संत भी जुड़े थे। जब मैं इन संतों से पूछता था कि महाराज क्या होगा, तो वे कहते थे कि सफलता मिलेगी। मैं कहता था कि आपकी आयु ढल रही है, कैसे सफलता मिलेगी। वे कहते थे कि फिर जन्म लेंगे, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनाकर रहेंगे। वहां एक ही संकल्प था, हर हाल में राम मंदिर के माध्यम से राष्ट्र मंदिर के निर्माण को भव्य स्वरूप देना है।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी में सभी ने भव्य-दिव्य महाकुंभ प्रयागराज को देखा है। 45 दिन के आयोजन में एक स्थान पर 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालु सहभागी बने। यह देख दुनिया अभिभूत थी। उसके सामने अकल्पनीय, अविस्मरणीय दृश्य था। जो लोग कहते थे कि हिंदू समाज में भेदभाव है, उनकी आंखें खुली रह गईं कि एक ही संगम में सब स्नान कर रहे हैं। वहां जाति, मत, संप्रदाय का कोई भेद नहीं है। यही तो सनातन धर्म की सही पहचान है, जिस पहचान को महाकुंभ ने फिर से दे दिया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भव्य राष्ट्रमंदिर के भव्य स्वरूप का श्रेय काशीवासियों को जाता है, क्योंकि इन्होंने ऐसा प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजा है। यह सारा कार्य पीएम मोदी के करकमलों से हो रहा है। काशी ने देश को ऐसा प्रतिनिधि दिया है, जो न केवल पूर्वजों के संकल्प की पूर्ति कर रहे हैं, बल्कि राष्ट्र मंदिर को भी भव्य स्वरूप देने का कार्य कर रहे हैं। इस प्राचीन राम मंदिर का इतिहास बहुत गौरवशाली है। लोग 50 साल तक की उपलब्धियों पर गर्मी दिखाते हैं, लेकिन यहां का इतिहास सात-सवा सात सौ वर्षों का है। 1398 संवत में जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी के प्रथम शिष्य अनंताचार्य जी महाराज ने यहां राम मंदिर को स्थापित किया। वर्तमान में संवत 2082 चल रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने इसे छेड़ा है यानी यहां कुछ तो रहा होगा। इतिहास बताता है कि जगद्गुरु अनंताचार्य, उनके शिष्य नरहरिदास और उनके शिष्य गोस्वामी तुलसीदास ने शैशवावस्था के पांच वर्ष वेद-वेदांत के अध्ययन के लिए इसी स्थान पर व्यतीत किए थे। तुलसीदास के रामचरित मानस और सुंदरकांड का पाठ हर सनातन धर्मावलंबियों के घर हर मांगलिक कार्य में होता है। उस बीज का रोपण यहां से होता है और इसका केंद्र बिंदु प्राचीन श्रीराम मंदिर है।

सीएम योगी ने कहा कि अनेक ज्ञानियों, तपस्वियों, त्यागियों ने इसे कर्मसाधना की भूमि के रूप में स्वीकार किया। बाबा कीनाराम, स्वामी विवेकानंद, मां आनंदमयी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जगद्गुरु भगवताचार्य, जगद्गुरु शिवरामाचार्य, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे महंत रामचंद्र दास परमहंस जी महाराज, वर्तमान अध्यक्ष मणिराम दास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास जी महाराज, पूर्व सांसद रामविलास वेदांती आदि संतों की समृद्ध परंपरा इसी प्राचीन राम मंदिर की देन है। यहीं से इन्होंने संन्यास के जीवन की शुरुआत की।

सीएम योगी ने इस परंपरा की 23वीं पीढ़ी के रूप में स्वामी डॉ. रामकमलाचार्य वेदांती जी महाराज का जिक्र करते हुए कहा कि यह विरासत के संरक्षण का अभिनव प्रयास है, जो हर सनातन धर्मावलंबियों के लिए नई प्रेरणा, प्रकाश और मार्ग है। मैं कहता था कि महाकुंभ पूज्य संतों का कार्यक्रम है, वे ही इसका नेतृत्व करेंगे। इससे देवों और पितरों का आशीर्वाद खुद ही प्राप्त हो जाएगा। इससे महाकुंभ ने सफलता भी अर्जित की।

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