November 24, 2024
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आजादी की लड़ाई में ‘बी अम्मा’ की कहानी, जिन्हें महात्मा गांधी ने मां कहा था

नई दिल्ली, देश को आजाद कराने के संघर्ष में मुस्लिम महिलाओं में बेगम आब्दी बानो (बी. अम्मा) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख आवाज रहीं। वह पहली मुस्लिम महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लिया और देश के प्रति उनके प्रेम और उनके जज्बे के कारण महात्मा गांधी को यह कहना पड़ा था कि ‘आप मेरी मां हैं और मैं आपका बेटा हूं’।

वह ब्रिटिश राज से भारत को मुक्त करने के लिए आंदोलन का हिस्सा थीं। बी. अम्मा का जन्म 1850 में उत्तरप्रदेश में हुआ और रामपुर रियासत के एक वरिष्ठ अधिकारी अब्दुल अली खान से उनकी शादी हुई। उनके एक बेटी और पांच बेटे थे। हालांकि हैजा की बीमारी के कारण उनके पति की मृत्यु हो गई, उनके सभी बच्चों में से मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली जौहर भारतीय इतिहास में ‘अली भाइयों’ के रूप में मशहूर हुए। जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘खिलाफत आंदोलन’ शुरू किया था।

दिल्ली यूनिवर्सिटी से रिटायर हुए प्रोफेसर अजय तिवारी उनके बारे में बताते हैं कि, वह एक रूढ़िवादी परिवार से आई थीं, उनके पति के कारण उनपर बहुत कर्ज हो गया था, पति के गुजर जाने के बाद 6 बच्चों को पालना उनके लिए असंभव था। हालांकि बढ़ते कर्ज के कारण उनके देवर ने कहा था कि, अपनी कुछ जायदाद बेच दो, कर्ज चुकता हो जाएगा। लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि यह जायदाद मेरी नहीं, बल्कि मेरे बच्चों की है। तो बच्चों की चीज बेचने का कोई मुझे हक नहीं।

उन्होंने अपने अंदर इस कदर बदलाव लाया कि गांधी जी ने यहां तक कह दिया की यह मेरी मां है और मै इनका बेटा। गांधी जी उस वक्त बहुत लोकप्रिय नेता थे और वह उनके बारे में यदि ऐसा कह रहे हैं तो उनकी स्तिथि के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है।

1917 और 21 के बीच अंग्रेजों के भारत रक्षा कानून के खिलाफ जबरदस्त माहौल था और सरोजीनी नायडू को गिरफ्तार कर लिया गया था। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद उस दौरान बी. अम्मा ने 10 रुपये का मासिक चंदा दिया था।

अजय तिवारी ने बताया, इस तरह की आर्थिक स्तिथि होने के बावजूद उनके अंदर जो जज्बा था, उससे उन्होंने सभी का दिल जीत लिया। भारत रक्षा कानून ने उनको प्रभावित किया और धार्मिक विश्वासों के साथ महिलाओं के स्वाधीनता के विचार आए। यह उनके बदलाव का एक बड़ा कारण था।

कांग्रेस नेता सुब्रमण्यम अय्यर एक सभा की अध्यक्षता कर रहे थे, तो पहली बार बी अम्मा ने उनको एक पत्र लिखा और वो पत्र ऐतिहासिक हुआ। उसके बारे में कहा जाता है कि, स्वाधीनता आंदोलन का एक दस्तबेज है। पत्र में लिखा था कि, मैं एक मुस्लिम औरत हूं और गैर मर्द से बात करना हमारे शरिया कानून के लिहाज से कुफ्र है, लेकिन मैं एक गैर मर्द को यह चिट्ठी लिख रही हूं।

बी. अम्मा प्रगतिवादी स्वभाव के बावजूद ‘सख्त पर्दे’ की अवधारणा में विश्वास रखती थी। वह पंजाब की एक सभा को संबोधित करने पहुंची थी, मंच पर उन्होंने बुर्का हटा दिया, मुस्लिम महिला के इस तरह व्यवहार करने से उस सभा में तहलका मच गया। उन्होंने उस सभा में कहा था कि, “मै तुमसे बड़ी हूं और तुम मेरे बेटे हो और बेटों के सामने मां को पर्दा करने की जरूरत नहीं।” यही कारण है कि स्वाधीनता आंदोलन में खड़े होने वाले लोगों की वह अम्मा बन गई।

1917 में, अपने दो बेटों को जेल से रिहा करने के लिए आंदोलन में शामिल हुईं। महात्मा गांधी ने उन्हें बोलने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का समर्थन मिल सकता था। खिलाफत आंदोलन के समर्थन के लिए इन्होंने पूरे भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की। बेगम आब्दी बीनो ने खिलाफत आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए धन उगाहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अजय तिवारी जोर देकर कहते हैं, 1924 में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के 66 साल बाद पाकिस्तानी सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी कर स्वतंत्रता की लड़ाई में उनके योगदान को मान्यता दी। लेकिन भारत में हम अपने ऐसी स्वाधीनता सेनानियों को याद रखने के लिए कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर रहे हैं। स्वाधीनता प्राप्ति के अमृत महोत्सव में हम बेगम आब्दी बानो जैसे असाधारण व्यक्तित्वों की यादगार बचाने का भी प्रयत्न करें तो हमारा उत्सव सार्थक होगा।

मोहम्मद शोएब खान –आईएएनएस

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