सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें हरियाणा में 400 केवी विद्युत पारेषण लाइन द्वारा मार्गाधिकार (आरओडब्ल्यू) के लिए भूमि के लिए एकसमान क्षति को उचित ठहराया गया था। न्यायालय ने कहा कि भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत भूमि मालिकों को होने वाली क्षति का आकलन करने के लिए यह उचित पद्धति नहीं होगी।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की खंडपीठ ने हाईकोर्ट से कानून के अनुसार मामले पर पुनर्विचार करने को कहा।
पीठ के लिए फैसला लिखते हुए, न्यायमूर्ति बिंदल ने कहा, “ज़मीन का कुछ हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग या किसी अन्य सड़क के पास हो सकता है; कुछ हिस्सा आबादी के पास भी हो सकता है, जबकि ज़मीन का कुछ हिस्सा ग्रामीण इलाकों में पड़ता हो जहाँ ज़मीन का इस्तेमाल सिर्फ़ कृषि उद्देश्यों के लिए होता है और सड़कों से कोई संपर्क नहीं है। पूरे ट्रांसमिशन कॉरिडोर के लिए एक समान दर लागू करना, ज़मीन मालिकों के हक़ के उचित मुआवज़े का आकलन करने की उचित पद्धति नहीं होगी।”
यह आदेश उच्च न्यायालय के 24 फरवरी, 2023 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है। इस फैसले में कहा गया था कि मुआवज़ा तय करते समय, उच्च न्यायालय ने विभिन्न ज़मीनों को एक समान मानकर गलती की थी। उसने एक गाँव (राई, सोनीपत) के लिए कलेक्टर रेट पर भरोसा किया और उसे पूरे 100 किलोमीटर के दायरे में लागू कर दिया। दरअसल, यह विवाद हरियाणा के सोनीपत और झज्जर ज़िलों में ज़मीन को प्रभावित करने वाले ट्रांसमिशन टावरों और ओवरहेड लाइनों के निर्माण से हुए नुकसान को लेकर था।
क्षतिपूर्ति बढ़ाने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाले ठेकेदार की ओर से वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता ने तर्क दिया कि पूरा अनुबंध 44 करोड़ रुपये का था, जबकि क्षतिपूर्ति की गणना यदि उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार की जाए तो यह अनुबंध राशि से अधिक होगी, जिससे यह अव्यवहारिक हो जाएगा।
Leave feedback about this