हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने कल इस बात पर जोर दिया कि सुशासन अब केवल एक आदर्श नहीं रह गया है, बल्कि एक व्यावहारिक और साध्य दृष्टिकोण बन गया है, जो डिजिटल नवाचार, बढ़ी हुई पारदर्शिता और नीति-निर्माण में अधिक से अधिक जन भागीदारी द्वारा सक्षम है। राज्यपाल धर्मशाला में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए), भारत क्षेत्र जोन-2 के वार्षिक सम्मेलन के समापन दिवस पर बोल रहे थे।
लोकतांत्रिक संस्थाओं की उभरती भूमिका पर प्रकाश डालते हुए राज्यपाल ने कहा, “लोकतंत्र में विधायिका केवल कानून बनाने वाली संस्था नहीं है, बल्कि राज्य के आर्थिक, प्राकृतिक और मानव संसाधनों के न्यायसंगत, पारदर्शी और जिम्मेदार उपयोग का मार्गदर्शन करने वाली प्रमुख संस्था है।”
उन्होंने सीमित संसाधनों और बढ़ती सार्वजनिक अपेक्षाओं की चुनौती को रेखांकित किया तथा विधानमंडलों से नीति निर्माण और बजट निगरानी में दूरदर्शी और कल्याण-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया।
दलबदल विरोधी कानून पर बोलते हुए शुक्ला ने कहा कि हालांकि यह कानून लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पवित्रता को बनाए रखने के लिए बनाया गया था, लेकिन समय के साथ इसकी व्याख्या अधिक जटिल होती गई है। उन्होंने कहा, “लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का भरोसा कायम रखने और जनमत की गरिमा की रक्षा के लिए अब इस कानून पर व्यापक राष्ट्रीय चर्चा की सख्त जरूरत है।”
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते प्रभाव पर बोलते हुए राज्यपाल ने कहा, “एआई अब भविष्य नहीं है – यह वर्तमान है।” उन्होंने कहा कि विधानमंडल कार्यवाही दस्तावेजीकरण, अभिलेखों के डिजिटलीकरण, विधायी अनुसंधान, आभासी बैठकों और डेटा विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में पारदर्शिता, पहुंच और दक्षता बढ़ाने के लिए एआई का लाभ उठा सकते हैं।
विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि दलबदल विरोधी कानून को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है ताकि जनप्रतिनिधि लोगों का विश्वास बनाए रखते हुए इसकी अवहेलना न कर सकें।
उन्होंने कहा कि विधानसभा ने हाल ही में एक कानून पारित किया है, जिसके अनुसार यदि कोई सदस्य दलबदल विरोधी कानून के तहत अपनी सदस्यता खो देता है, तो उसे विधानसभा द्वारा दी जाने वाली सभी सुविधाओं और पेंशन से वंचित कर दिया जाएगा और अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। इस विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है।