शिमला, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के एक जंगल में भयानक आग लगने से चिलगोजे, जूनिपर और भोजपत्र के हजारों पेड़ जलकर खाक हो गए हैं।
स्थानीय लोगों ने रविवार को बताया कि पूह डिवीजन के अक्पा-जांगी क्षेत्र के जंगल में पिछले तीन दिनों से लगी आग में हजारों पेड़ जलकर खाक हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस आग पर काबू पाने के लिए कोई खास मशक्कत नहीं की है, जबकि यहां आईटीबीपी के जवान तैनात हैं। शिमला से यह जगह 10 घंटे की ड्राइव पर है। यह समुद्री तल से 1,800 से 3,000 मीटर उपर स्थित है। यह देश में चिलगोजे का सबसे बड़ा जंगल है। इस जंगल में काले भालू, हिमालयी तहर और नीली भेड़ें रहती हैं।
एक स्थानीय शेरिंग तांडुप ने कहा कि जंगल में लगी आग की वजह से चिलगोजा की प्रजाति खतरे में आ गई है। यह दुर्लभ प्रजाति का पेड़ है। जांगी गांव मुख्य रूप से पूरे देश में चिलगोजा की आपूर्ति करता है। अगर सरकार ने आग पर काबू नहीं पाया तो यह प्रजाति आने वाले दिनों में खत्म हो जाएगी।
जांगी गांव के निवासी तांडुप ने आईएएनएस से फोन पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि स्थानीय प्रशासन आग बूझाने में ग्रामीणों की मदद कर रहे हैं लेकिन इससे कुछ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि गांव के लोग आग बुझाने में मदद के लिए हेलीकॉटर सेवा की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि स्थानीय लोग सरकार से खफा हैं क्योंकि आग पर काबू पाने के लिए देर से कार्रवाई शुरू की गई। आमतौर पर जब आग लगती है तो स्थानीय लोग इसे बुझाने की कोशिश करते हैं लेकिन इस बार यह इतनी बड़ी है कि स्थानीय लोग इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं। चिलगोजा पाइन बढ़ने में बहुत समय लेता है। इसकी औसत आयु 150 से 200 साल होती है।
नेचर वॉच इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक राजेश्वर नेगी ने आईएएनएस के कहा कि चिलगोजा पाइन राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में रहने वाले लोगों की आजीविका का साधन है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को आग पर काबू पाने, उसे रिपोर्ट करने और राज्य या केंद्र सरकार से मदद मांगने में जिला प्रशासन की असफलता पर जांच बिठानी चाहिए।
इस साल गर्मी के मौसम में पूरे राज्य में जंगल में लगी आग आम दिन की बात हो गई है। वन विभाग ने पहले से ही बचाव के उपाय नहीं किए , जिसके कारण ऐसा हुआ है। शिमला की पहाड़ियों से धुएं का निकलना इन दिनों आम हो गया है। इससे पहले तारा देवी पहाड़ी के जंगल में लगी आग में बड़ा हिस्सा तबाह हो गया था।
अब बेशकीमती चिलगोजा पाइन के पेड़ जल रहे हैं लेकिन उसकी परवाह करने वाला कोई नहीं है। यह ठंडे मरुस्थल से पहले का आखिरी प्राकृतिक जंगल है।
नेगी ने कहा कि जंगल की आग के कारण वनस्पतियों और जीवों को होने वाले नुकसान का विस्तृत सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।
वन अधिकारियों ने कहा कि अधिकतर मामलों में जंगल में आग लगने की घटना जानबूझकर के लगाई गई आग के कारण होती है। गांव के लोग घास में आग लगाते हैं, ताकि बारिश के बाद नरम घास आए। अधिकतर मामलों में यही घास की आग पास के जंगल में फैल जाती है।
किन्नौर के अलावा चंबा जिल के पांगी और भारमौर में भी चिलगोजा के पेड़ हैं।