N1Live National जहानाबाद में त्रिकोणीय मुकाबला; जदयू, राजद जातीय समीकरण के ‘चक्रव्यूह’ में जहानाबाद, 27 मई (आईएएनएस)। सोन, पुनपुन और फल्गु नदी से सिंचित जहानाबाद की चर्चा कुछ वर्षों पहले नक्सलवाद को लेकर होती थी, लेकिन समय बदला और इस चुनाव में यहां विकास की चर्चा भी खूब हो रही है। कृषि प्रधान इस क्षेत्र से अब तक भाजपा का सांसद नहीं रहा है। हालांकि उसकी सहयोगी पार्टी जदयू का परचम लहराता रहा है। गुफाओं के लिए प्रसिद्ध जहानाबाद में इस चुनाव में मुकाबला दिलचस्प है। जदयू ने एक बार फिर चंद्रेश्वर प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि राजद की ओर से विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव यहां से ताल ठोंक रहे हैं। वहीं पूर्व सांसद अरुण कुमार के बसपा से चुनाव मैदान में उतर जाने से यहां की लड़ाई रोचक हो गयी है। अरवल, कुर्था, जहानाबाद, घोसी, मखदुमपुर और अतरी छह विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र में दोनों गठबंधन को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जहानाबाद में अंतिम चरण में एक जून को मतदान होना है। पूरी तरह परिणाम को लेकर तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन लोग इस बात की तस्दीक जरूर कर रहे हैं कि अगर एनडीए लोगों के क्रोध, नाराजगी को दूर कर सकी तो उसके लिए राह आसान होगी। यहां के युवा नरोत्तम आईएएनएस से कहते हैं कि सांसद आते हैं क्या? कभी अपनी गाड़ी भी यहां रोकी? वे कहते हैं कि प्रदेश में जंगलराज के लोगों को नहीं आने देंगे, लेकिन हम लोगों को सम्मान भी चाहिए। साफ है कि लोगों की नाराजगी सांसद से है। इधर, एनडीए ने नाराजगी दूर करने के लिए पूरी टीम उतार दी है। बताया जाता है कि पूर्व राज्यसभा सदस्य दिवंगत महेंद्र प्रसाद उर्फ किंग महेंद्र के भाई और अरिस्टो फार्मा के प्रमुख भोला शर्मा भी पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद क्षेत्र में पहुंच गए, लोगों की नाराजगी दूर करने में जुटे हैं। इस परिवार का इस क्षेत्र में अपना महत्व है। वे भूमिहार सम्मेलन बुलाकर भी नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए के एक नेता ने कहा कि सभी गांव में भूमिहार समाज के नेता पहुंच रहे हैं और लोगों से माफी मांग कर नाराजगी दूर करने में जुटे हैं। जहानाबाद में जदयू के पुराने वोटर का गुस्सा इस बात को लेकर है कि उनके सांसद उनके पास नहीं आए। गुस्से का एक कोण यह भी है कि जिस भूमिहार जाति के लोगों ने जदयू को पिछली बार वोट दिया था, उस जाति से प्रत्याशी नहीं मिला। इधर, अरवल नगर के कोनिका गांव में 20 से 25 घर रविदास टोला में है। यहां के सुमन कुमार ने कहा कि वोट तो किसी न किसी को देना ही है। अभी तय नहीं किया है कि किस को देंगे। हालांकि वे यह कहते हैं कि बसपा इस चुनाव में बेहतर स्थिति में है। पलायन और सिंचाई को लेकर भी यहां के लोग बात करते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के चंदेश्वर प्रसाद को जीत हासिल हुई थी और उन्हें 3.35 लाख से अधिक वोट मिले थे। राजद प्रत्याशी सुरेंद्र प्रसाद यादव दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 3.33 लाख वोट मिले थे। चंद्रेश्वर 1800 से कम मतों से विजयी हुए थे। भूमिहार बाहुल्य इस इलाके में जातीय समीकरण चुनाव परिणाम को प्रभावित करते रहे हैं। जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र में लगभग 16 लाख से अधिक मतदाता हैं। यहां यादव और भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां पर सभी बड़ी पार्टियां कुछ चुनावों को छोड़कर इन्हीं जातियों के नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाती रही हैं। एससी-एसटी, कुशवाहा और मुस्लिम वोटर भी चुनाव में निर्णायक भूमिका में रहते हैं। माना जा रहा है कि इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी अरुण कुमार भूमिहार वोट के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। इसके साथ आशुतोष भी चुनाव मैदान में निर्दलीय लड़ रहे हैं। इसके कारण एनडीए उम्मीदवार की मुश्किलें और बढ़ सकती है। दूसरी तरफ राजद नेता मुन्नी लाल यादव टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर इस बार चुनाव मैदान में निर्दलीय कूद पड़े हैं। यादव वोट बैंक पर उनकी नजर है। इनके आने से राजद उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जहानाबाद से यादव और भूमिहार जाति के उम्मीदवार ही अधिकांश बार जीतते आए हैं। –आईएएनएस एमएनपी/एसकेपी
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जहानाबाद में त्रिकोणीय मुकाबला; जदयू, राजद जातीय समीकरण के ‘चक्रव्यूह’ में जहानाबाद, 27 मई (आईएएनएस)। सोन, पुनपुन और फल्गु नदी से सिंचित जहानाबाद की चर्चा कुछ वर्षों पहले नक्सलवाद को लेकर होती थी, लेकिन समय बदला और इस चुनाव में यहां विकास की चर्चा भी खूब हो रही है। कृषि प्रधान इस क्षेत्र से अब तक भाजपा का सांसद नहीं रहा है। हालांकि उसकी सहयोगी पार्टी जदयू का परचम लहराता रहा है। गुफाओं के लिए प्रसिद्ध जहानाबाद में इस चुनाव में मुकाबला दिलचस्प है। जदयू ने एक बार फिर चंद्रेश्वर प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि राजद की ओर से विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव यहां से ताल ठोंक रहे हैं। वहीं पूर्व सांसद अरुण कुमार के बसपा से चुनाव मैदान में उतर जाने से यहां की लड़ाई रोचक हो गयी है। अरवल, कुर्था, जहानाबाद, घोसी, मखदुमपुर और अतरी छह विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र में दोनों गठबंधन को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जहानाबाद में अंतिम चरण में एक जून को मतदान होना है। पूरी तरह परिणाम को लेकर तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन लोग इस बात की तस्दीक जरूर कर रहे हैं कि अगर एनडीए लोगों के क्रोध, नाराजगी को दूर कर सकी तो उसके लिए राह आसान होगी। यहां के युवा नरोत्तम आईएएनएस से कहते हैं कि सांसद आते हैं क्या? कभी अपनी गाड़ी भी यहां रोकी? वे कहते हैं कि प्रदेश में जंगलराज के लोगों को नहीं आने देंगे, लेकिन हम लोगों को सम्मान भी चाहिए। साफ है कि लोगों की नाराजगी सांसद से है। इधर, एनडीए ने नाराजगी दूर करने के लिए पूरी टीम उतार दी है। बताया जाता है कि पूर्व राज्यसभा सदस्य दिवंगत महेंद्र प्रसाद उर्फ किंग महेंद्र के भाई और अरिस्टो फार्मा के प्रमुख भोला शर्मा भी पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद क्षेत्र में पहुंच गए, लोगों की नाराजगी दूर करने में जुटे हैं। इस परिवार का इस क्षेत्र में अपना महत्व है। वे भूमिहार सम्मेलन बुलाकर भी नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए के एक नेता ने कहा कि सभी गांव में भूमिहार समाज के नेता पहुंच रहे हैं और लोगों से माफी मांग कर नाराजगी दूर करने में जुटे हैं। जहानाबाद में जदयू के पुराने वोटर का गुस्सा इस बात को लेकर है कि उनके सांसद उनके पास नहीं आए। गुस्से का एक कोण यह भी है कि जिस भूमिहार जाति के लोगों ने जदयू को पिछली बार वोट दिया था, उस जाति से प्रत्याशी नहीं मिला। इधर, अरवल नगर के कोनिका गांव में 20 से 25 घर रविदास टोला में है। यहां के सुमन कुमार ने कहा कि वोट तो किसी न किसी को देना ही है। अभी तय नहीं किया है कि किस को देंगे। हालांकि वे यह कहते हैं कि बसपा इस चुनाव में बेहतर स्थिति में है। पलायन और सिंचाई को लेकर भी यहां के लोग बात करते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के चंदेश्वर प्रसाद को जीत हासिल हुई थी और उन्हें 3.35 लाख से अधिक वोट मिले थे। राजद प्रत्याशी सुरेंद्र प्रसाद यादव दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 3.33 लाख वोट मिले थे। चंद्रेश्वर 1800 से कम मतों से विजयी हुए थे। भूमिहार बाहुल्य इस इलाके में जातीय समीकरण चुनाव परिणाम को प्रभावित करते रहे हैं। जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र में लगभग 16 लाख से अधिक मतदाता हैं। यहां यादव और भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां पर सभी बड़ी पार्टियां कुछ चुनावों को छोड़कर इन्हीं जातियों के नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाती रही हैं। एससी-एसटी, कुशवाहा और मुस्लिम वोटर भी चुनाव में निर्णायक भूमिका में रहते हैं। माना जा रहा है कि इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी अरुण कुमार भूमिहार वोट के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। इसके साथ आशुतोष भी चुनाव मैदान में निर्दलीय लड़ रहे हैं। इसके कारण एनडीए उम्मीदवार की मुश्किलें और बढ़ सकती है। दूसरी तरफ राजद नेता मुन्नी लाल यादव टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर इस बार चुनाव मैदान में निर्दलीय कूद पड़े हैं। यादव वोट बैंक पर उनकी नजर है। इनके आने से राजद उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जहानाबाद से यादव और भूमिहार जाति के उम्मीदवार ही अधिकांश बार जीतते आए हैं। –आईएएनएस एमएनपी/एसकेपी

Triangular contest in Jehanabad; JDU, RJD in 'chakravyuh' of caste equation

जहानाबाद, 27 मई। सोन, पुनपुन और फल्गु नदी से सिंचित जहानाबाद की चर्चा कुछ वर्षों पहले नक्सलवाद को लेकर होती थी, लेकिन समय बदला और इस चुनाव में यहां विकास की चर्चा भी खूब हो रही है। कृषि प्रधान इस क्षेत्र से अब तक भाजपा का सांसद नहीं रहा है। हालांकि उसकी सहयोगी पार्टी जदयू का परचम लहराता रहा है।

गुफाओं के लिए प्रसिद्ध जहानाबाद में इस चुनाव में मुकाबला दिलचस्प है। जदयू ने एक बार फिर चंद्रेश्वर प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि राजद की ओर से विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव यहां से ताल ठोंक रहे हैं। वहीं पूर्व सांसद अरुण कुमार के बसपा से चुनाव मैदान में उतर जाने से यहां की लड़ाई रोचक हो गयी है।

अरवल, कुर्था, जहानाबाद, घोसी, मखदुमपुर और अतरी छह विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र में दोनों गठबंधन को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

जहानाबाद में अंतिम चरण में एक जून को मतदान होना है। पूरी तरह परिणाम को लेकर तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन लोग इस बात की तस्दीक जरूर कर रहे हैं कि अगर एनडीए लोगों के क्रोध, नाराजगी को दूर कर सकी तो उसके लिए राह आसान होगी।

यहां के युवा नरोत्तम आईएएनएस से कहते हैं कि सांसद आते हैं क्या? कभी अपनी गाड़ी भी यहां रोकी? वे कहते हैं कि प्रदेश में जंगलराज के लोगों को नहीं आने देंगे, लेकिन हम लोगों को सम्मान भी चाहिए। साफ है कि लोगों की नाराजगी सांसद से है।

इधर, एनडीए ने नाराजगी दूर करने के लिए पूरी टीम उतार दी है। बताया जाता है कि पूर्व राज्यसभा सदस्य दिवंगत महेंद्र प्रसाद उर्फ किंग महेंद्र के भाई और अरिस्टो फार्मा के प्रमुख भोला शर्मा भी पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद क्षेत्र में पहुंच गए, लोगों की नाराजगी दूर करने में जुटे हैं। इस परिवार का इस क्षेत्र में अपना महत्व है। वे भूमिहार सम्मेलन बुलाकर भी नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।

एनडीए के एक नेता ने कहा कि सभी गांव में भूमिहार समाज के नेता पहुंच रहे हैं और लोगों से माफी मांग कर नाराजगी दूर करने में जुटे हैं। जहानाबाद में जदयू के पुराने वोटर का गुस्सा इस बात को लेकर है कि उनके सांसद उनके पास नहीं आए। गुस्से का एक कोण यह भी है कि जिस भूमिहार जाति के लोगों ने जदयू को पिछली बार वोट दिया था, उस जाति से प्रत्याशी नहीं मिला।

इधर, अरवल नगर के कोनिका गांव में 20 से 25 घर रविदास टोला में है। यहां के सुमन कुमार ने कहा कि वोट तो किसी न किसी को देना ही है। अभी तय नहीं किया है कि किस को देंगे। हालांकि वे यह कहते हैं कि बसपा इस चुनाव में बेहतर स्थिति में है। पलायन और सिंचाई को लेकर भी यहां के लोग बात करते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के चंदेश्वर प्रसाद को जीत हासिल हुई थी और उन्हें 3.35 लाख से अधिक वोट मिले थे। राजद प्रत्याशी सुरेंद्र प्रसाद यादव दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 3.33 लाख वोट मिले थे। चंद्रेश्वर 1800 से कम मतों से विजयी हुए थे।

भूमिहार बाहुल्य इस इलाके में जातीय समीकरण चुनाव परिणाम को प्रभावित करते रहे हैं। जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र में लगभग 16 लाख से अधिक मतदाता हैं। यहां यादव और भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां पर सभी बड़ी पार्टियां कुछ चुनावों को छोड़कर इन्हीं जातियों के नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाती रही हैं। एससी-एसटी, कुशवाहा और मुस्लिम वोटर भी चुनाव में निर्णायक भूमिका में रहते हैं।

माना जा रहा है कि इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी अरुण कुमार भूमिहार वोट के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। इसके साथ आशुतोष भी चुनाव मैदान में निर्दलीय लड़ रहे हैं। इसके कारण एनडीए उम्मीदवार की मुश्किलें और बढ़ सकती है।

दूसरी तरफ राजद नेता मुन्नी लाल यादव टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर इस बार चुनाव मैदान में निर्दलीय कूद पड़े हैं। यादव वोट बैंक पर उनकी नजर है। इनके आने से राजद उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जहानाबाद से यादव और भूमिहार जाति के उम्मीदवार ही अधिकांश बार जीतते आए हैं।

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