N1Live National साहित्य जगत के दो अनमोल रत्न, ‘पद्मश्री’ विनायक कृष्ण गोकाक और उड़िया भाषा के ‘कालिदास’ गंगाधर मेहरे, जिनकी लेखनी ने रचे नए कीर्तिमान
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साहित्य जगत के दो अनमोल रत्न, ‘पद्मश्री’ विनायक कृष्ण गोकाक और उड़िया भाषा के ‘कालिदास’ गंगाधर मेहरे, जिनकी लेखनी ने रचे नए कीर्तिमान

Two precious gems of the literary world, 'Padmashree' Vinayak Krishna Gokak and 'Kalidas' Gangadhar Mehre of Oriya language, whose writings created new records.

नई दिल्ली, 9 अगस्त । कन्नड़ और उड़िया भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार विनायक कृष्ण गोकाक और गंगाधर मेहरे ने अपनी रचनाओं में क्षेत्रीय अस्मिता, संस्कृति और सहज मानव भावों को खूबसूरती से एक लड़ी में पिरोया। भारत के इन दो महान साहित्यकारों की आज जयंती है।

‘पद्मश्री ‘ से सम्मानित विनायक कृष्ण गोकाक कन्नड़ भाषा के प्रमुख साहित्यकारों में शुमार हैं। उनका जन्म 9 अगस्त 1909 को कर्नाटक के हावेरी जिले में हुआ था। वो एक कुशल कवि, उपन्यासकार, समालोचक, नाटककार और निबंध लेखक थे। 1934 में उनका प्रथम कविता संकलन ‘कलोपासक’ प्रकाशित हुआ था, जो बेहद प्रसिद्ध हुआ

विनायक कृष्ण गोकाक को ‘कन्नड़ भाषा में’ आधुनिक समालोचना का जनक’ कहा जाता है। उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘जननायक’ (1939) और ‘युगांतर’ (1947) शामिल हैं। गोकाक की सर्वश्रेष्ठ रचना उनका महाकाव्य ‘भारत सिंधु रशिम’ है।

इस महाकाव्य में एक ओर विश्वामित्र का आख्यान है जो क्षत्रिय राजकुमार होकर भी ऋषि बन गए। दूसरी ओर इसमें आर्य और द्रविड़ समस्याओं के सामरस्य और ‘भारतवर्ष’ के आविर्भाव की कथा है।

कन्नड़ साहित्य में विनायक कृष्ण गोकाक का अमूल्य योगदान है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें साल 1961 पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। विनायक कृष्ण गोकाक ने 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी अपने नाम किया था। उन्हें 1990 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा गया था। विनायक कृष्ण गोकाक ने 28 अप्रैल 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।

वहीं उड़िया भाषा के कालिदास माने जाने वाले गंगाधर मेहरे का जन्म 9 अगस्त, 1862 को उड़ीसा के बरगढ़ जिले में हुआ था। एक निर्धन जुलाहा परिवार में जन्मे गंगाधर बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

गंगाधर मेहरे के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कपड़े बनाते-बनाते ही कविता करना सीख लिया था। उन्होंने अपने गांव में वैद्य के रूप में भी काम किया था। परिवार का भरण-पोषण करने के लिए उन्होंने गांव में एक स्कूल खोलकर बच्चों को भी पढ़ाया था।

गंगाधर मेहरे को हिंदी और बंगाली में भाषा का भी ज्ञान था। वो उड़ीया के अलावा बंगाली पत्रिका और समाचार पत्र भी पढ़ा करते थे। उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान संस्कृत भाषा भी सीखी थी।

गंगाधर मेहरे का पहला काव्य (काव्य कृति) ‘रस-रत्नाकर’ था। इसके बाद उन्होंने आधुनिक उड़िया शैली में कविताएं और काव्य लिखे। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की, लेकिन ‘प्रणय वल्लरी’ और ‘तपस्विनी’ ने सर्वाधिक प्रसिद्ध हासिल की है। उनके लगभग सभी लेखन में मौलिकता की झलक मिलती है। गाधर मेहरे ने 4 अप्रैल, 1924 को जीवन की अंतिम सांस ली थी।

इन्हें उड़िया भाषा का कालिदास कहा जाता है। जानते हैं क्यों? क्योंकि इन्हें भी उनकी ही तरह साहित्य में ‘प्रकृति-कवि’ माना जाता है। वो कवि जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अतिसुन्दर, अमृतमय और अमृत से युक्त देखता है और पढ़ने वालों को भी उसी तरह देखने को मजबूर कर देता है।

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