नई दिल्ली, 31 जुलाई । अमेरिका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में न्यूरोसाइंस के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में पता चला है कि जन्म से अंधे लोगों में प्राइमरी विजुअल कॉर्टेक्स में बिल्कुल अलग कनेक्टिविटी पैटर्न विकसित होते हैं जो एक प्रकार से उनके फिंगरप्रिंट की तरह होते हैं। प्राइमरी विजुअल कॉर्टेक्स दिमाग का वह क्षेत्र है जो देखने की इंसान की क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित इस शोध में जन्मांध लोगों में मस्तिष्क की कनेक्टिविटी का अनोखा पैटर्न सामने आया है।
लेनिया एमरल और एला स्ट्रीम-अमित के नेतृत्व में किए गए शोध में बताया गया है कि जन्म से अंधे व्यक्तियों में विजुअल कॉर्टेक्स स्पर्श और ध्वनि सहित विभिन्न उत्तेजनाओं पर कैसे प्रतिक्रिया करता है। दृष्टि वाले लोगों के विजुअल कॉर्टेक्स कनेक्टिविटी में निरंतरता रहती है। इसके विपरीत अंधे व्यक्तियों में अत्यधिक व्यक्तिगत पैटर्न होते हैं जो समय के साथ स्थिर रहते हैं।
शोध में दो वर्षों तक अंधे लोगों के फंक्शनल एमआरआई स्कैन शामिल किए गए। इसमें पता चला कि उन्हें कोई भी काम करने के लिए दिया जाए, उनके कनेक्टिविटी पैटर्न में निरंतरता रहती है – चाहे आवाजों को पहचानने का काम हो या आकृतियों की पहचान करने का।
एमरल ने कहा, “इन पैटर्नों में कार्य के आधार पर कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ, जो इन तंत्रिका कनेक्शनों की विशिष्टता और स्थिरता को रेखांकित करता है।
स्ट्रीम-अमित ने कहा, “हम देख सकने वाले व्यक्तियों में विजुअल कॉर्टेक्स कनेक्टिविटी में इस स्तर की भिन्नता नहीं देखते हैं। जन्म से अंधे लोगों में कनेक्टिविटी पैटर्न एक व्यक्तिगत फिंगरप्रिंट की तरह होता है जो समय के साथ पहचानने योग्य और स्थिर होता है।”
स्ट्रीम-अमित ने मस्तिष्क विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि जन्म के बाद के अनुभव मस्तिष्क के विकास के विविध मार्गों को तय करते हैं, खास तौर पर उन लोगों में जो बिना दृष्टि के बड़े होते हैं। मस्तिष्क की यह प्लास्टिसिटी विजुअल कॉर्टेक्स के अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल को संभव बनाती है।
शोध से पता चलता है कि रिहैबिलिटेशन और दोबारा रोशनी लौटाने में प्रत्येक व्यक्ति की कनेक्टिविटी को समझते हुए उनके लिए अलग-अलग समाधान विकसित करना महत्वपूर्ण है।