पूरे राज्य में फैले धुएं के कारण खेतों में आग लगने की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने विस्तार वैज्ञानिकों से धान की पराली के प्रबंधन के लिए निरंतर प्रयास करने का आह्वान किया, जो पंजाब के लिए कभी खत्म न होने वाला मुद्दा रहा है।
उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे, कदम दर कदम, स्थिति में सुधार हुआ है। उन्होंने विस्तार अधिकारियों से किसानों को धान के अवशेषों में माचिस न डालने के लिए जागरूक करने पर जोर दिया।
आज यहां बैठक के दौरान अनुसंधान एवं विस्तार कार्य की समीक्षा करते हुए अध्यक्ष डॉ. गोसल ने सर्वोच्च न्यायालय की अनदेखी तथा धान की पराली जलाने से निकलने वाले धुएं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली श्वसन समस्याओं पर गंभीर चिंता जताई, जिससे पंजाब राज्य की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंच रहा है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि आने वाले समय में पंजाब के हर कोने को शून्य दहन क्षेत्र बनाने के लिए कड़ी मेहनत और अतिरिक्त प्रयास किए जाने चाहिए।
अनुसंधान निदेशक डॉ. एएस धत्त ने कहा कि चर्चा राज्य में चावल/ बासमती किस्मों के प्रदर्शन, धान की पराली प्रबंधन, कपास की बेमौसमी प्रबन्धन और कपास की उपज संभावनाओं, गेहूं के बीज की बिक्री, जैव उर्वरकों की बिक्री, तिलहन को बढ़ावा देने, तथा धान अवशेष प्रबंधन और गेहूं की बुवाई के लिए नई मित्तर सीडर मशीन के प्रदर्शन और व्यावसायिक निर्माण पर केन्द्रित थी ।
अपने स्वागत भाषण में विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. एमएस भुल्लर ने बताया कि पीएयू के फील्ड स्तर के अधिकारियों और विद्यार्थी समुदाय ने राज्य में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए कुशलतापूर्वक काम किया है।
उन्होंने कहा कि यद्यपि खेतों में आग लगाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन शहरी और ग्रामीण आबादी के साथ-साथ राज्य कृषि के कल्याण के लिए निरंतर प्रयासों के साथ इस मुद्दे से निपटने की आवश्यकता है। विस्तार शिक्षा के अतिरिक्त निदेशक डॉ. जीपीएस सोढ़ी ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
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