N1Live National भारत से उलझकर क्या मिला? बलूचिस्तान टू चटगांव एक बार फिर खंडित होने की कगार पर पाकिस्तान और बांग्लादेश
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भारत से उलझकर क्या मिला? बलूचिस्तान टू चटगांव एक बार फिर खंडित होने की कगार पर पाकिस्तान और बांग्लादेश

What did we achieve by messing with India? Balochistan to Chittagong: Pakistan and Bangladesh on the verge of disintegration once again

पाकिस्तान 1971 में भारत के हाथों मात झेल चुका है और अपने टुकड़े होने का गम उसे अभी तक सताता रहता है। वहीं, पाकिस्तान को और खंडित होने का डर सताने लगा है।

दरअसल, पाकिस्तान में कई प्रांतों से लगातार आजादी की आवाज उठती रही है। भारत पाकिस्तान संघर्ष के बीच इन आवाजों में और भी तेजी आ गई। अब दोनों देशों के बीच भले सीजफायर की घोषणा हो गई और सीमा पर तनाव खत्म हुआ है। लेकिन, पाकिस्तान के अंदर ‘आजाद ख्याल’ वाले लोगों की आवाज अब और ज्यादा तेज और बुलंद हो गई है।

दूसरी तरफ बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी इलाके चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में उभरती आवाज अब ढाका की सत्ता के लिए चुनौती बनती जा रही है। पाकिस्तान में बलूचिस्तान की बुलंद होती आवाज की तरह ही बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में भी संघर्ष का शोर बढ़ता जा रहा है। यानी चटगांव बांग्लादेश का बलूचिस्तान बनता जा रहा है। वैसे चटगांव हिल ट्रैक्ट्स के लिए स्वायत्तता की मांग बांग्लादेश में दशकों से उठती रही है, लेकिन सरकारों ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। यही उपेक्षा अब चटगांव को भी वैसा ही विद्रोही इलाका बना रही है, जैसा बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए बन गया है।

ये समझना जरूरी है कि बलूचिस्तान की तरह चटगांव भी खनिज, जंगल और जैविक संसाधनों से भरपूर इलाका है। दोनों ही जगह पर स्थानीय आदिवासी आबादी को बाहरी लोगों के जरिए दबाया गया। वहां की संस्कृति, भाषा और पहचान को खत्म करने की कोशिश की गई। बलूचों की तरह ही चकमा, मर्मा और जुम्मा समुदायों की पहचान संकट में है। दोनों ही इलाकों में स्वायत्तता की मांग को राष्ट्रद्रोह बताकर दबाने की कोशिश की गई। जिसके बाद यहां के लोगों का जख्म उभर आया।

हालांकि, पाकिस्तान के लिए परिस्थितियां और भी खराब हैं। पाकिस्तान में केवल एक टुकड़े के लिए ही आवाज नहीं उठी है। पाकिस्तान के चार प्रमुख प्रांतों बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में अस्थिरता और असंतोष की स्थिति अपने चरम पर है। इन प्रांतों की स्थिति पाकिस्तान के संभावित विभाजन का आधार बन सकती है। बलूचिस्तान, जो क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, उसने अपने आप को अलग देश घोषित कर दिया है और वह इसकी मान्यता के लिए गुहार भी लगा रहा है। वहीं, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी अलगाववादी भावनाएं प्रबल हैं। पाकिस्तान का यह प्रांत भी स्वतंत्र “सिंधस्तान” बनने की राह पर अग्रसर हो रहा है। तीसरा पाकिस्तान का पंजाब है, जो सबसे शक्तिशाली और जनसंख्या वाला प्रांत है, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सेना का आधार है। यहां भी लोग “पंजाबिस्तान” के रूप में एक देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वहीं, खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और अन्य आतंकवादी संगठनों का प्रभाव बढ़ रहा है। यह क्षेत्र शेष “पाकिस्तान” के रूप में रह सकता है, लेकिन उसकी स्थिति कमजोर और अस्थिर होगी।

अगर पाकिस्तान के इतने टुकड़े हो गए तो बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हो जाएगा। सिंधस्तान कराची जैसे आर्थिक केंद्र के साथ उभरेगा। पंजाबिस्तान सबसे शक्तिशाली इकाई के रूप में उभरेगा। वहीं मूल पाकिस्तान के हिस्से में बचा खैबर पख्तूनख्वा और कुछ उत्तरी क्षेत्र आएगा, जो अस्थिर और कमजोर होगा।

भारत के हिस्से वाले कश्मीर पर दावा करने वाला पाकिस्तान तो अब अपना ही देश नहीं संभाल पा रहा है। एक ओर जहां बलूचिस्तान ने अपने आप को अलग देश घोषित कर दिया है, एक बलोच नेता ने तो यहां तक दावा किया है कि अब बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बलूचिस्तान को अलग देश बनाने के लिए मदद मांगी है। वहीं दूसरी ओर सिंध के लोग भी अलग देश की मांग कर रहे हैं।

बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह कर रहे बलूच नेता और उनके समर्थक भारत की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को खाली कराने की मांग का पूर्ण समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान पर इस क्षेत्र को खाली करने के लिए दबाव बनाने का आग्रह किया है। बलूच नेता मीर यार बलोच ने कहा कि 14 मई 2025 को बलूचिस्तान पाकिस्तान से पीओके खाली करने के लिए कहने के भारत के फैसले का पूरा समर्थन करता है।

मीर यार बलोच ने इस दौरान पाकिस्तान को चेतावनी दी कि अगर उसने भारत की बात नहीं मानी, तो 93,000 सैनिकों की ढाका जैसी एक और शर्मनाक हार के लिए सिर्फ पाकिस्तानी सेना के लालची जनरल जिम्मेदार होंगे, जो पीओके की जनता को मानव ढाल बना रहे हैं।

बलूचिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों की तरफ से बलूचिस्तान के लिए अलग से राष्ट्रीय ध्वज और बलूचिस्तान का अलग नक्शा जारी किया गया है, जिनमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग दिखाया गया है। ‘बलूचिस्तान रिपब्लिक’ का शोर इतना गहरा गया है कि पाकिस्तान की सरकार और सेना के कानों में यह आवाज पिघले लोहे की तरह जा रही है।

मीर यार बलूच, महरंग बलूच, सम्मी दीन बलूच और साहिबा बलूच जैसे प्रमुख बलूच नेता इस पूरे संघर्ष की अगुवाई कर रहे हैं और पाकिस्तान के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। बलूच नेता पाकिस्तान से अलग बलूचिस्तान की घोषणा के साथ यह कह रहे हैं कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय फैसला ले लिया है। बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है और दुनिया को चुप नहीं रहना चाहिए।

उन्होंने भारत से नई दिल्ली में बलूच दूतावास खोलने की अनुमति मांगी और संयुक्त राष्ट्र से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान करने के साथ करेंसी, पासपोर्ट और अन्य के लिए इंटनेशनल हेल्प प्रदान करने की मांग की है।

ऐसे में लगने लगा है कि इतिहास 1971 को दोहरा रहा है, ऐसा ही कुछ मुक्ति वाहिनी सेना ने बांग्लादेश की आजादी के समय किया था और तब भारत ने उसका समर्थन कर पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। यानी भारत एक बार फिर बलूचों को समर्थन देकर 1971 की तरह पाकिस्तान को तोड़कर एक और आजाद मुल्क बलूचिस्तान बना सकता है। लेकिन, यह अभी भविष्य के गर्भ में है कि भारत सरकार क्या फैसला लेती है।

बलूचों के मन में पाकिस्तान के खिलाफ पनपी आग नई नहीं है, 1948 में सैन्य ताकत के बल पर पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को अपने साथ मिलाया था तभी से बलूचों के दिल में यह टीस है। अंग्रेजों के जाने के साथ बलूचों ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी थी। पाकिस्तान ने पहले तो बलूचों की ये बात मानी, लेकिन बाद में मुकर गया। उसके बाद धीरे-धीरे बलूचों को लगने लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है। क्योंकि बलूच लोगों की भाषा और कल्चर बाकी पाकिस्तान से अलग है। वे बलूची भाषा बोलते हैं, जबकि पाकिस्तान में उर्दू और उर्दू मिली पंजाबी चलती है। बलूचियों को डर है कि पाकिस्तान उनकी भाषा भी खत्म कर देगा, जैसी कोशिश वो बांग्लादेश के साथ कर चुका है। जिसकी वजह से बांग्लादेश को मुक्ति के लिए संघर्ष करना पड़ा।

अब ऐसे में पाकिस्तान जिस तरह से कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश करता है, ऐसे में भारत बलूचिस्तान का समर्थन करके इसका करारा जवाब पाकिस्तान को दे सकता है। इसके साथ ही बलूचिस्तान की आजादी को समर्थन देना भारत के लिए रणनीतिक तौर पर भी फायदा पहुंचा सकता है क्योंकि यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के साथ ही ग्वादर बंदरगाह यहीं है। ऐसे में भारत का बलूचिस्तान को समर्थन मिलने से पाकिस्तान और चीन की भारत को घेरने की रणनीतिक योजनाएं कमजोर होंगी।

पाकिस्तान का 44 प्रतिशत हिस्सा केवल बलूचिस्तान का है। अगर यह अलग हो गया तो पाकिस्तान एकदम छोटा हो जाएगा और वह उस तरह से आतंकियों का समर्थन नहीं कर पाएगा, जैसा अभी तक करता आया है। बलूचिस्तान का बनना भारत को अरब सागर में नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगा, जिससे पाकिस्तान और चीन की नौसैनिक गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी।

पाकिस्तान की सांसें बलूचिस्तान में इसलिए भी अटकी है क्योंकि इसकी भौगोलिक स्थिति इसे दुनिया के सबसे अमीर इलाके के तौर पर पहचान दिलाती है। यह इलाका पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में है, जिसके क्षेत्रफल में ईरान और अफगानिस्तान की जमीन भी शामिल है। पाकिस्तान का 44 फीसदी भूभाग यही है। जबकि इतने बड़े क्षेत्र में पाक की कुल आबादी के सिर्फ साढ़े तीन फीसदी लोग ही रहते हैं। दूसरी बात यहां जमीन के नीचे तांबा, सोना, कोयला और यूरेनियम का प्रचुर भंडार है। मतलब पाकिस्तान का सबसे अमीर राज्य, लेकिन, यहां के लोग सबसे गरीब हैं।

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