नई दिल्ली, 10 सितंबर । प्रसिद्ध असमिया कवि नीलमणि फूकन (कनिष्ठ) किसी पहचान के मोहताज नहीं। वे ‘जनकवि’ के रूप में भी मशहूर हैं। असम के गोलघाट जिले में 10 सितंबर 1933 को जन्मे नीलमणि फूकन मूलत: असमिया भाषा के भारतीय कवि और कथाकार थे। राजनीति से लेकर कॉस्मिक तक, समकालीन से लेकर आदिम तक, उन्होंने हर विषय पर अपनी कलम से जादू बिखेरा।
कविता की कई किताबें लिखने वाले इन ‘जनकवि’ की खासियत यह थी कि उनकी लेखनी में समकालीन घटनाओं के साथ-साथ दर्द भी झलकता है। असमिया साहित्य में उन्हें ऋषि तुल्य माना जाता है। उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में ‘सूर्य हेनो नामि अहे एई नादियेदी’, ‘मानस-प्रतिमा’, ‘सूर्यमुखी फुल्तोर फाले’, और ‘कोबिता’ इत्यादि उनकी चर्चित कृतियां हैं। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने जापानी और यूरोपीय कविताओं का भी असमिया में अनुवाद किया।
उनकी कल्पना पौराणिक है। उन्हें असम का सबसे प्रतिष्ठित कवि माना जाता है। 1950 के दशक की शुरुआत में कविता लिखना शुरू करने वाले इस कवि ने साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाई। फूकन ने 1964 में गुवाहाटी के आर्य विद्यापीठ कॉलेज में लेक्चरर के रूप में अपना करियर शुरू किया, जहां उन्होंने 1992 में रिटायरमेंट तक काम किया।
नीलमणि फूकन जिन परिदृश्यों का उदाहरण देते हैं, वो मौलिक हैं। वो आग और पानी, ग्रह और तारा, जंगल और रेगिस्तान, मनुष्य और पर्वत, समय और स्थान, युद्ध और शांति, जीवन और मृत्यु की बात करते थे। उनकी सोच और आम जन-जीवन में एक खास जुड़ाव था। हर कोई उनकी लेखनी और कविताओं के संगम में बहता चला जाता था।
प्रगतिशील सोच वाले आधुनिक कवि करीब सात दशकों तक कविताओं के माध्यम से सक्रिय रहे और असमिया कविता को नई पहचान दिलाई। 1981 में कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1990 में पद्मश्री सहित दस क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ’ प्राप्त करना था। वह इसे प्राप्त करने वाले असम के मात्र तीसरे साहित्यकार हैं। 89 वर्ष की आयु में वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों के कारण उनका निधन हो गया था।