March 22, 2025
National

केंद्र सरकार का मिला साथ तो ‘जल सहेलियों’ ने बदल डाला इतिहास

With the support of the central government, ‘Jal Sahelis’ changed history

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ की मुट्ठी भर महिलाओं ने मिलकर एक प्रण लिया है। पठारी इलाके में पानी की किल्लत से जूझते हुए दशकों को गुजर गए लेकिन अब आने वाली पीढ़ी को उस दर्द से बचाना चाहती हैं। इलाके में जल सहेलियां चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। इनकी कोशिशों को सरकार ने मान भी दिया है और आगे बढ़ने का जरूरी हौसला भी।

इन महिलाओं ने परमार्थ समाजसेवी संस्था की मदद से ‘जल सहेली’ नाम का एक समूह बनाया है। इससे जुड़ी हर महिला को जल सहेली कहा जाता है। जो अपने गांवों में पानी की किल्लत से कैसे बचा जाए, इसे लेकर खूब मेहनत कर रही हैं। जल सहेलियां लोगों को पानी बचाने, संरक्षण करने, कुओं को गहरा करने, पुराने तालाबों को ठीक करने, छोटे बांध बनाने और हैंडपंप को सुधारने जैसे कामों में मदद करती हैं। इसके अलावा, ये सरकारी अधिकारियों से मिलकर समुदाय की भागीदारी बढ़ाने और ज्ञापन देने का काम भी करती हैं।

परमार्थ संस्था ने पूरे बुंदेलखंड में 2000 से ज्यादा जल सहेलियों का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया है। इस ‘जल सहेली’ मॉडल के जरिए चंदेल काल के पुराने तालाबों को फिर से जिंदा करने का शानदार काम हुआ है। गांव की ये महिलाएं कई बार पुरुषों से भी बेहतर तरीके से काम करती हैं।

जल सहेलियों का कहना है कि जहां उनके समूह बने हैं, वहां विकास साफ दिखता है। जल स्रोतों से अतिक्रमण हटा है, पीने का पानी मिलने लगा है और खेती के लिए सिंचाई की समस्या भी कम हुई है।

जल सहेलियों ने बताया कि बुंदेलखंड इलाके में उन्होंने 1000 से ज्यादा नदियां और तालाबों को जिंदा कर दिया है। टीकमगढ़ और निवाड़ी के करीब 250 गांवों में चार लाख से ज्यादा लोगों को इसका फायदा पहुंचा है। इस काम के लिए उन्हें राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री से 100 से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। गांवों में चौपाल और पंचायत लगाकर लोगों को जागरूक करने के बाद उन्हें समर्थन मिलता है। सरकार से सम्मान मिलने से उनका हौसला और बढ़ता है। अभी ये 2000 से ज्यादा जल सहेलियां मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 6-7 जिलों में काम कर रही हैं।

एक जल सहेली ने कहा, “हम सबने मिलकर कुआं खुदवाया। अब हमें पानी की कोई दिक्कत नहीं है।”

वहीं, एक अन्य जल सहेली रानी बिलगैंया ने बताया, “हमारा संगठन 2011 में शुरू हुआ था। हमने लोगों को पानी बचाने और संरक्षण के बारे में समझाया। अच्छे लोगों ने हमारी मदद की और धीरे-धीरे हमारा समूह बड़ा हुआ। हम आगे भी ये काम जारी रखेंगे।”

एक अन्य जल सहेली ने कहा, “बुंदेलखंड में जल संकट बहुत पुराना है। बढ़ती आबादी को देखते हुए हमने ये मुहिम शुरू की। हमने नदियों को बचाने के लिए भी लोगों को जागरूक किया।”

सुमन ने खुशी जताते हुए कहा, “हमने 250 गांवों में चार लाख से ज्यादा लोगों तक पानी पहुंचाया। मुझे बहुत अच्छा लगता है।” जल सहेली ममता को राष्ट्रपति और सीएम ने सम्मानित किया है। उन्होंने बड़ी खुशी से उसका जिक्र करते हुए कहा, “मुझे राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री से पुरस्कार मिले हैं। इसके अलावा 100 से ज्यादा छोटे-बड़े सम्मान भी मिल चुके हैं।”

रविना यादव ने कहा, “हम कई जिलों में काम कर रहे हैं। आने वाले दिनों में हमारी संख्या और बढ़ेगी।” तो वहीं मुन्नी ने कहा, “गांव-गांव जाकर लोगों ने हमारी मदद की। सरकार से पुरस्कार मिलने से हमारा हौसला बढ़ता है।”

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