March 6, 2025
National

महिला दिवस स्पेशल : पद्मश्री शोभना नारायण के लिए ‘स्त्री-पुरुष सब बराबर, असल नारीवाद मूल्यों पर डटे रहना’

Women’s Day Special: For Padma Shri Shobhana Narayan, ‘Men and women are equal, stick to the real feminist values’

छह दशक से ज्यादा का समय कथक को देने वालीं पद्म श्री शोभना नारायण अब भी थकी नहीं हैं। उत्साह और जोश अब भी कायम है। नृत्यांगना ही नहीं, बल्कि सधी हुई लेखिका भी हैं। नौकरशाह भी रही हैं। ‘इंटरनेशनल वीमेन्स डे’ पर भला नारीवाद और जेंडर इक्वलिटी के सही मायने बताने वाला इनसे बेहतर कौन होगा? न्यूज एजेंसी आईएएनएस से विशेष बातचीत में सुविख्यात नृत्यांगना ने अपने जीवन के कुछ अनमोल पल और सबक साझा किए।

नारीवाद को लेकर शोभना जी की सोच अलग है। स्त्री-पुरुष के भेद को नहीं मानतीं, इनके लिए सब मनुष्य हैं क्योंकि संघर्ष, चुनौती किसी एक के हिस्से नहीं, सबके हिस्से आती है। ऐसी ही एक चुनौती 1977 में फेस की। बताती हैं- “मुझे अब भी याद है वो 1977 का साल था। राजस्थान में बड़ा ट्रेन एक्सिडेंट हुआ, मैं 26 साल की थी, अलवर गई, पिता के शव की पहचान की, दिल्ली लेकर आई और मुखाग्नि दी। उस दौर में बेटी का मुखाग्नि देना बड़ी बात थी, फिर भी मैंने किया। मैं यहीं नहीं रूकी। वहीं से मथुरा गई और कथक प्रस्तुति दी। दिल रो रहा था लेकिन उस चुनौती का भी सामना किया।”

‘पद्मश्री’ मानती हैं कि नारीवाद का मतलब डर के माहौल में अपने मूल्यों को न भूलकर आगे बढ़ना है। डर और खौफ को झटक कर दूर करना है। मेरा मानना है खौफ भी एक मेंटल स्टेट है।

आगे कहती हैं, “मुझे इस बात पर 1990 का वो दौर भी याद आता है जब मैंने राजस्थान के एक सुदूर छोर पर नृत्य कार्यक्रम दिया। टैक्सी से ट्रैवल कर भोपाल पहुंची। आप सोचें, वो चंबल का इलाका था। मैंने अकेले ही दूरी तय की। तो कहने का मतलब सिर्फ इतना कि डर या खौफ मेंटल स्टेट है, हिम्मत है तो सब कुछ है। मां दुर्गा को देखिए। किसको नहीं परास्त किया, कौन नहीं पूजता उन्हें…हमारी प्रेरणा तो वो हैं और डरना एक मेंटल स्टेट है। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही हमारे व्यवहार में परिलक्षित होता है।”

शोभना के लिए फीमेल लीडरशिप जैसी कोई चीज मायने नहीं रखती। महिला नेतृत्व के सवाल पर बोलीं, “अपने अनुभव के आधार पर कहूं तो मैंने लैंगिक असमानता या फिर फीमेल लीडरशिप की जरूरत को कभी महसूस नहीं किया। मेरी परवरिश भी ऐसे माहौल में हुई जहां ऐसा कुछ था नहीं। यही वजह है कि मैं सोचती हूं कि इस पर बहस इतनी क्यों? क्या सेफ्टी सिक्योरिटी की जरूरत पुरुषों को नहीं होती? ये तो दोनों के लिए आवश्यक है न। अगर हम ये सोच लें कि रास्ते में चलते वक्त टांग टूट जाएगी, इसलिए चले नहीं, तो ऐसा नहीं होता। डर के माहौल में अपने मूल्यों को न भूलना असल नारीवाद है।”

कथक में जो अपना नाम कमाना चाहते हैं, इस कला में खुद को मांझना चाहते हैं, उनके लिए बहुमुखी प्रतिभा संपन्न शोभना का सबक क्या है। हंसते हुए कहती हैं, “बस ये कि जैसे मैंने चुनौतियों का सामना किया, उतार-चढ़ाव मेरे जीवन में भी आए लेकिन, मैंने उनसे हार नहीं मानी, बल्कि संघर्ष किया और छोटी-मोटी समस्याओं को दरकिनार कर दिया। एक बात और (खिलखिलाते हुए कहती हैं) मेरे पास जो आता है, वो मेरी तरह हो जाता है, इसलिए कोई सबक नहीं, बस जिंदगी को जिंदगी की तरह जिएं।”

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