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कार्यशाला में मांसपेशीय दुर्विकास में अनुसंधान, पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया गया

Workshop focuses on research, rehabilitation in muscular dystrophy

कोठों गांव में मानव मंदिर स्थित एकीकृत मस्कुलर डिस्ट्रॉफी पुनर्वास केंद्र (आईएमडीआरसी) में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और संबंधित आनुवंशिक विकारों पर राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला आयोजित की गई। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के सहयोग से इंडियन एसोसिएशन ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (आईएएमडी) द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित रोगियों के उपचार और पुनर्वास में प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया गया।

इस कार्यक्रम का समापन कल भारत भर के प्रमुख विशेषज्ञों और चिकित्सा पेशेवरों की भागीदारी के साथ हुआ। मुख्य चर्चाओं में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से प्रभावित बच्चों के लिए बेहतर आहार और जीवनशैली के महत्व के साथ-साथ प्रभावी पुनर्वास के लिए शोध-आधारित रणनीतियों पर चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने जीएनई मायोपैथी जैसे रोग के दुर्लभ रूपों के उपचार में नवीनतम विकास की भी खोज की और दुर्लभ रोगों से निपटने के लिए चल रहे सरकारी प्रयासों पर प्रकाश डाला।

आईएएमडी की अध्यक्ष संजना गोयल ने इस प्रगतिशील विकार के प्रबंधन में समग्र देखभाल और सामुदायिक समर्थन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कार्यशाला के दौरान रोगी पुनर्वास के लिए एक व्यापक चिकित्सा-आधारित रणनीति तैयार की गई।

इसमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की दिल्ली, भोपाल, जोधपुर और बिलासपुर शाखाओं, पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ और कोलकाता, सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली, सीएचजी बैंगलोर, ग्रो लैब, आशिका विश्वविद्यालय और अन्य जैसे शीर्ष चिकित्सा संस्थानों के प्रतिनिधियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

आईसीएमआर से डॉ रुचि सिंह और एम्स नई दिल्ली से डॉ शैफाली गुलाटी ऑनलाइन चर्चा में शामिल हुईं। उल्लेखनीय वक्ताओं में डॉ. अश्विन दलाल (सीडीएफडी हैदराबाद), डॉ. आशीष शर्मा (एम्स बिलासपुर), डॉ. रेनू सुथार (पीजीआईएमईआर चंडीगढ़), डॉ. लोकेश सैनी (एम्स जोधपुर) और डॉ. अनुराधा दिवाकर शेनॉय (एम्स भोपाल) शामिल हैं। अन्य योगदानकर्ता थे डॉ. संजीवा जीएन (सीएचजी बैंगलोर), डॉ. समीर भाटिया (सर गंगा राम अस्पताल), डॉ. गौतम कामिला (एम्स दिल्ली), डॉ. वैभव भंडारी (स्वावलंबन फाउंडेशन) और मुरली चेतलापल्ली (भारत एमडी फाउंडेशन)।

यह कार्यशाला मांसपेशीय दुर्विकास में सहयोगात्मक अनुसंधान और रोगी-केंद्रित देखभाल की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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