विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने बुधवार को कहा कि एसओपी और अन्य रूपरेखा तैयार करने के बाद हिमाचल विधानसभा में शून्यकाल शुरू किया जाएगा।
उन्होंने कहा, “शून्य काल वह समय होता है जब विधायक सार्वजनिक सरोकार और तत्काल महत्व के मुद्दे उठा सकते हैं, जिन्हें अन्यथा सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता। हालांकि, किसी भी मुद्दे को उठाने की अनुमति देने का विवेकाधिकार अध्यक्ष के पास है।” तत्काल जवाब देना संभव नहीं है और यह अनिवार्य भी नहीं है।
पठानिया ने स्पष्ट किया कि शून्यकाल में उठाया गया मुद्दा दो से तीन मिनट तक ही सीमित रहना चाहिए तथा इसे बार-बार नहीं उठाया जा सकता।
पठानिया ने कहा, “एसओपी संसद के मामले की तरह ही होगा। हमारी विधानसभा ई-विधान शुरू करने वाली पहली विधानसभा है, इसलिए हमें शून्यकाल शुरू करने में पहल करनी चाहिए थी।”
अध्यक्ष ने कहा कि शून्यकाल शुरू करने का निर्णय लिया गया है और सरकार के साथ चर्चा के बाद इसकी रूपरेखा तैयार की जाएगी।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सुझाव दिया कि सरकार से चर्चा और एसओपी तय होने के बाद ही शून्यकाल शुरू किया जाना चाहिए। सीएम सुक्खू ने कहा, “संसदीय कार्य मंत्री ने किसी भी तरह से स्पीकर के अधिकार को चुनौती नहीं दी है। संसद में शून्यकाल के दौरान उठाए गए सवालों के जवाब एक महीने बाद दिए जाते हैं।”
उन्होंने कहा कि सरकार को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे लागू करने से पहले इसकी रूपरेखा और एसओपी पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि शून्यकाल शुरू करने का निर्णय लेते समय सरकार को विश्वास में नहीं लिया गया।
संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा, “विपक्ष का कहना है कि अध्यक्ष सरकार के दबाव में काम करते हैं। उन्होंने सरकार से नहीं पूछा, यह बात साबित करती है कि वह तटस्थ हैं।”
उन्होंने शून्यकाल की रूपरेखा, मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने तथा सदन के हित में किस प्रकार के मुद्दे उठाए जा सकते हैं, के बारे में जानकारी मांगी।
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर कार्य मंत्रणा समितियों द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए ताकि सदस्य संतुष्ट हो सकें। इसे राजनीतिक मुद्दों को निपटाने का तरीका नहीं बनना चाहिए।” चौहान ने कहा कि सरकार शून्यकाल शुरू करने के किसी भी तरह से खिलाफ नहीं है।
राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि जनहित के मुद्दे शून्यकाल के दौरान उठाए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘दस विधानसभाओं और संसद में शून्य काल होता है और यह आधे घंटे का होता है, जिस पर केवल मुद्दे उठाए जाएंगे लेकिन सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं दिया जाएगा।’’
विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर ने कहा कि संसदीय कार्य मंत्री यह कहकर अध्यक्ष की कुर्सी पर आक्षेप लगा रहे हैं कि अध्यक्ष ने सरकार को विश्वास में नहीं लिया।
ठाकुर ने कहा, “विपक्ष शून्यकाल के पक्ष में है और इसकी रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए ताकि अधिकतम सदस्य सार्वजनिक मुद्दे उठा सकें, क्योंकि अन्यथा उन्हें समय देना संभव नहीं है।”
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार शून्यकाल शुरू करने को लेकर चिंतित नहीं है।
नैना देवी के विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि रूपरेखा तय करने के बाद शून्यकाल आधे घंटे का नहीं बल्कि एक घंटे का होना चाहिए।
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