November 22, 2024
Litrature

धर्मवीर भारती की कविता टूटा पहिया

 

टूटा पहिया

मैं

रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ

लेकिन मुझे फेंको मत !

क्या जाने कब

इस दुरूह चक्रव्यूह में

अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ

कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय !

अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी

बड़े-बड़े महारथी

अकेली निहत्थी आवाज़ को

अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें

तब मैं

रथ का टूटा हुआ पहिया

उसके हाथों में

ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ !

मैं रथ का टूटा पहिया हूँ

लेकिन मुझे फेंको मत

इतिहासों की सामूहिक गति

सहसा झूठी पड़ जाने पर

क्या जाने

सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !

‘टूटा पहिया’ एक प्रतीकात्मक रचना है। इस प्रतीक को कवि ने महाभारत के कथानक से लिया है। अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में अकेले ही प्रवेश किया। कौरवसेना के महारथियों ने उसे घेर कर उसके सब शस्त्र नष्ट कर डाले। उसने रथ के टूटे पहिए को शस्त्र बनाकर शत्रुओं का सामना किया। कवि ने इसी घटना के आधार पर यह प्रतीक ग्रहण किया है। समाज जब न्याय और सत्य के रास्ते से हटकर असत्य के मार्ग पर बढ़ना चाहेगा, तब उसका विरोध करनेवाला व्यक्ति अभिमन्यु के समान अपने को चक्रव्यूह में घिरा पाएगा। उस समय उसके लिए लघु और निस्सार समझे जानेवाला कोई आदमी (सामान्य जन) सहायक बनेगा। टूटा पहिया जैसे लघु मानव की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, संभवतः यही इस कविता का संदेश है। अपनी प्रतिक्रिया दें……

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